Kaisa jivan by Indu Kumari
कैसा जीवन
जीवन है समरसता की धारा
छल प्रपंचों को करें किनारा
सादगी नर जीवन की पहचान
मानव सब जीवों में बुद्धिमान
दानवी प्रवृति नहीं तेरा श्रृंगार
सुकर्म पथ पर बरसाओ प्यार
रिस्तों की बागडोर संभालो
छोटी गलतियों न देखो भालो
जीवन है महासंगम की धारा
प्रेम समन्वय हो विचार धारा
मीठी बोली इंसान बहाओ ना
सुखी टूटी रिस्ते फिर उगाओ ना
मरी आत्मा को जिलाओ ना
समरसता की धारा बहाओ ना
धोखे नहीं तुम्हारी फितरत है
वैमनस्यता को दूर भगाओ ना।