Vairagani by Shailendra Srivastava

 वैरागिनी (hindi kahani)  

Vairagani by Shailendra  Srivastavaजाड़े की कुनकुनी धूप मे घुटने पर सिर टिकाये वह अपने बारे मे सोच रही थी ।लोग उसे लेकर तरह तरह किस्से गढ़ रहे थे ।वह जोगिया धोती क्यों पहनती है ।खासकर सुबह सुबह जब गोमती नदी मे स्नान करने के लिए घर से निकलती थी ।

        रोज सुबह नदी मे स्नान करके वह मंदिरों मे फूल चढाती ।भगवान का भजन गाती थी ।बहुत सुरीली आवाज थी उसकी । इसकारण वह  गोमती घाट पर बने मंदिरों मे फूल चढाने के लिए आने वाली औरतों मे प्रिय थी ।

         दिन मे घर से निकलने पर पैंट शर्ट पहन लेती थी जिस कारण वह लड़का होने का भ्रम बनाये रहती थी ।

         वह एक गरीब बनिया परिवार से थी ।तीन बहनों मे सबसे बड़ी । देखने मे सामान्य कद काठी मे सांवली सूरत की थी वह ।शादी की उम्र हो गई थी पर दहेज न जुटा पाने के कारण हर जगह उसके पिता को निराशा ही हाथ लगती रहती है ।

          इसका प्रभाव यह हुआ कि वह विरक्त की ओर बढने लगी । ईश्वर की भक्ति मे वह रमने लगी ।कंठ अच्छा होने के कारण जिन घरों मे अखण्ड रामायण का पाठ होता उनमें वह आदर से आमंत्रित की जाने लगी । दो चार घंटा सुरली आवाज मे उसका रामायण पाठ सबको बांधे रहता था ।।

      उसके इसी गुण के चलते मेरी माँ से पहचान बढ़ी थी ।उसका मेरे घर आना जाना लगा रहता था ।

   मेरी मां  पिता जी के गुजरने के बाद पूजा पाठ मे व्यस्त रहतीं थीं ।रोज प्रभात बेला मे गोमती नदी मे स्नान कर  घाट पर बने मंदिरों मे फूल चढ़ाने जाती थीं । इसी वजह से उसकी घनिष्ठता बढ़ गई थीं।

       माँ के माध्यम से कई घरों मे उसका  आना जाना हो गया । किसी के घर रामा यण पाठ का आयोजन  होता तो पाठ के लिए उसे अवश्य बुलाया जाता ।अपने सुरीले कंठ से सबका मनमोह लेती थी ।

          उसका यह शौक सांसारिक जीवन से विरक्त की ओर ले गया ।औऱ वह गेरूआ धोती पहनकर वैरागनी जीवन मे तल्लीन हो गई । 

           # शैलेन्द्र श्रीवास्तव

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