हम सभी एक समान-डॉ. माध्वी बोरसे
December 10, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
हम सभी एक समान!
जाति, धर्म से क्यों करते हैं भेदभाव,
क्यों नहीं इंसानियत को आजमाओ?
हम सभी का रक्त का रंग हे एक,
क्यों फिर यह जाति, धर्म अनेक?
सब की चमड़ी एक समान,
क्यों किसी का करते हो अपमान?
हम सब की है एक ही धर्म और जाति,
वह हे सिर्फ मानवता धर्म और मानव जाति!
किसी का छुआ पानी पीने में शर्माते हो,
हवा में क्यों खुल के सांस ले लेते हो!
पूछो किसी से, कि किए कितने इंसानियत के कर्म,
ना कि पूछो, क्या है उसकी जाति या धर्म!
जब प्रकृति और कायनात ने नहीं किया भेदभाव,
तो किस बात का जाति और धर्म का ताव!
चलो रखें सबसे भाईचारा और बनाए इंसानियत का रिश्ता,
हर एक है यहां, उस खुदा का फरिश्ता!
सब है समान यहां किसी को अलग ना समझो,
ईश्वर एक, शक्ति एक, सबको व्यवहार से परखो!
चलो रखे सबके साथ इंसानियत और प्रेम की भावना,
अब से किसी को आजमाओ, तो उसे उसकी इंसानियत से आजमाना!
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