बिकते - बहकते वोटर- जितेन्द्र 'कबीर'
बिकते - बहकते वोटर
लोकतंत्र में...
वोट के अधिकार के लिए
किसी योग्यता या मेहनत की
जरूरत नहीं पड़ती,
बस पैदा होना ही काफी
होता है,
अठ्ठारह का होते ही
बन जाता है इंसान
एक 'वोटर'
चाहे पढ़ा लिखा हो
या फिर अनपढ़,
चाहे समझदार हो
या फिर मूर्ख,
चाहे सज्जन हो
या फिर दुर्जन,
चाहे जान बचाने वाला हो
या फिर कोई हत्यारा ही,
जिस अधिकार के लिए
मेहनत, काबिलियत की
जरूरत कोई ना हो,
उसकी कद्र भी क्यों कर ही
करेंगे लोग,
इसीलिए...
बिक जाते हैं कई शराब और
रुपयों के पीछे,
कई लुभावने वादों के पीछे तो
कई वस्तुओं के लालच में,
और बहुत से बहकाए जाते हैं
जाति और धर्म के नाम पर,
इस सारे गोरखधंधे में
सबसे निचले पायदान पर
होते है
ईमानदारी, अच्छाई, शिक्षा,
उन्नति और सेवा भाव,
'लोकतंत्र' अपने सही अर्थों में
बहुत अच्छी व्यवस्था है
लेकिन हमनें अपनी मूर्खता से
इसे विकृत करने में कोई
कसर नहीं छोड़ी।
जितेन्द्र 'कबीर'
किसी योग्यता या मेहनत की
जरूरत नहीं पड़ती,
बस पैदा होना ही काफी
होता है,
अठ्ठारह का होते ही
बन जाता है इंसान
एक 'वोटर'
चाहे पढ़ा लिखा हो
या फिर अनपढ़,
चाहे समझदार हो
या फिर मूर्ख,
चाहे सज्जन हो
या फिर दुर्जन,
चाहे जान बचाने वाला हो
या फिर कोई हत्यारा ही,
जिस अधिकार के लिए
मेहनत, काबिलियत की
जरूरत कोई ना हो,
उसकी कद्र भी क्यों कर ही
करेंगे लोग,
इसीलिए...
बिक जाते हैं कई शराब और
रुपयों के पीछे,
कई लुभावने वादों के पीछे तो
कई वस्तुओं के लालच में,
और बहुत से बहकाए जाते हैं
जाति और धर्म के नाम पर,
इस सारे गोरखधंधे में
सबसे निचले पायदान पर
होते है
ईमानदारी, अच्छाई, शिक्षा,
उन्नति और सेवा भाव,
'लोकतंत्र' अपने सही अर्थों में
बहुत अच्छी व्यवस्था है
लेकिन हमनें अपनी मूर्खता से
इसे विकृत करने में कोई
कसर नहीं छोड़ी।