चिंतन के क्षण- डॉ हरे कृष्ण मिश्र

चिंतन के क्षण

चिंतन के क्षण- डॉ हरे कृष्ण मिश्र
रोम रोम में बसी है यादें,
बचा नहीं कुछ अपना है,
तेरे मेरे अपने सारे सपने,
बिखर गए सारे के सारे ।।

भूल नहीं पाया अब तक,
अपने अतीत के सपनों को,
देखा मिलजुल कर हमने ,
बीते बसंत कितने अपने ।।

छोटे-छोटे हर पगडंडी ,
केवल अपने लगते थे ,
मेरे अपने कितने प्यारे,
कहां रूठ गए सारे ।।,?

प्रणय का पूर्णांक मेरा,
कब मिलेगा ज्ञात नहीं,
याचना में क्या कहूं ,
वर्तमान मेरा है नहीं ।।

मेरे पूर्ण समर्पण का,
प्यार यहीं पर खोया है,
तेरे मेरे सपनों पर भी ,
पूर्ण विराम तो होना था।।

विगत दिनों पर क्या बोलूं,
वर्तमान हमारा हुआ नहीं,
मिटा दिया अपने को तूने,
संघर्ष भरा था जीवन तेरा ।।

हर छन की मर्यादा तेरी ,
मेरे मन पर अंकित है ,
पूजा के दो पुष्प लिए ,
आंखों में मेरे आंसू हैं ।।

संदर्भ हमारा अपना है ,
दर्द हमारा अपना है ,
खोया प्यार तुम्हारा है,
खाली हाथ हमारा है ।।

अंधकार में राह ढूंढता ,
पग पग ठोकर खाता ,
कठिन बनी है जिंदगी,
नैराश्य भरी मेरी आशा ।।

जीवन के सुचि दर्पण पर,
तेरा ही जीवन दर्शन है,
दूर नहीं होंगे हम दोनों ,
जन्म जन्म का नाता है ।।

स्पर्श का एहसास तेरा,
अंतर मन पर छाया है ,
दूरी का आभाष मुझे है,
बेचैन हुआ मेरा मन है ।।

स्नेह सदा तुझ से पाया है,
दर्द मिला तो रोना क्यों,
मेरा ख्याल किया करना,
तेरे ख्यालों में खोया हूं ।।

जुदाई शुभ नहीं होती,
विदाई दर्द का एहसास,
दर्द भरा जीवन अपना,
कहना सुनना अब किससे ।।

चिंतन के क्षण पास बैठकर,
एहसास तुम्हारा कर लेता हूं,
तेरे जीवन दर्शन अपना कर,
आत्म विभोर मैं हो जाता हूं ।।

मौलिक रचना
डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोकारो स्टील सिटी
झारखंड ।

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