मन- डॉ.इन्दु कुमारी
मन![मन- डॉ.इन्दु कुमारी मन- डॉ.इन्दु कुमारी](https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjrnoi51E-LQDrMvyoNT-S6ey29xyj8B7JnuJ5kuNMjHQrp7LloPTIh9DbJLKYeoS2CURCRrPBNXtx5umwidrcIECKTqHs2yefAg0Jv1CKhS8eZiGBQ1FsvsAfnGASAeIvKkKU83FXv2n1OwO7iIpj8Qrtn1ERi3a9SjgifutZmBPeLpoiBcoJbpYfD=w640-h494-rw)
रे मन तू चंचल घोड़ासरपट दौड़ लगाता है
लगाम धरी नहीं कसके
त्राहि त्राहि मचाने वाली
जीवन की जो हरियाली
पैरों तले कुचल डाली
बेभट कर कहीं न छोड़ा
रे मन तू चंचल है घोड़ा।
मन के अंदर है मालिक
वही उनके है नाविक
छोड़ी पतवार ले डूबेगी
फजीहत करवा ही डाली
कहाँ जाएगा कोई न जाने
फुदक -फुदक कर तूने
हर सीमा लाँघ ही डाली
मन के साथ जो रे दौड़े
उनके भगवान है मालिक
नकेल कसनी है मन की
सद्गुण में इसको रमाओ
सदयुक्ति के वशीकरण से
संत शरण गली ले जाओ
रे मन इतना ना भरमाओ।