सूनापन अखरता"- अनीता शर्मा

सूनापन अखरता

सूनापन अखरता"- अनीता शर्मा
अकेले चुपचाप खड़ी हो ,
देख रही थी,जहाँ दुनिया बसती थी ।

सूनापन पसरा था कमरे में,
जहाँ रौनक रहती थी ।

अंधियारा छाया था बंद कमरे में,
जहाँ उजियारा चहल-पहल होती थी।

बहुत अखरा था सूनापन मुझको,
बहुत अकेलापन लगता है।

जीवन में अकल्पनीय घटित हुआ,
सिर से हाँथ हटा माता पिता का ।

कितने स्नेहिल मातृ-पितृ कवच था,
हर विपदाओं का हल मिलता था।

निष्ठुर काल एक-एक कर निगल गया,
मेरे प्रिय जन मुझसे छीने ।

कसमसाहट हृदय वेदना बेबसी का,
दे गया काल छटपटाने हमेशा।

बेहद वेदनीय घड़ी थी,नयन अश्रु भरे 
पलकों ने अश्रु पीकर सुखा दिये थे।

चलचित्र से पल गुजर रहे थे और,
बाहर खामोशियां पसरी थी।!

-----अनिता शर्मा सुधा नर्सिग होम झाँसी
-----मौलिक रचना

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url