"टुकड़े- टुकड़े में बिखरी मेरी धरा अनमोल"-हेमलता दाहिया.
December 03, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
"टुकड़े- टुकड़े में बिखरी मेरी धरा अनमोल"
बात बात में शामिल हैं,जाति धर्म के बोल.
खोखले वादे खोल रहे हैं,हैं विकास की पोल.
पर पीड़ा ना पड़त दिखाईं,दूर सुहावना ढ़ोल.
टुकड़े टुकड़े में बिखरी,मेरी धरा अनमोल.
बड़ी बड़ी बाते ये करते,मुंह में दही शक्कर घोल.
कर्ज में डूबी हैं जनता,फटी पड़ी है खोल.
महंगाई सुरसा सी मुंह फाड़े,निकले ना मुंह से बोल.
टुकड़े टुकड़े में बिखरी ,मेरी धरा अनमोल..
रुकी रुकी है गति जीवन की,मिले ना कोई हमजोल.
ख़तम हुई रिश्तों की सच्चाई,सब संबंध हैं गोलमोल.
आपस में लड़ते भीड़ते है,कड़वी बोली बोल..
टुकड़े टुकड़े में बिखरी,मेरी धरा अनमोल.
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