बेनाम
अन्दर की अच्छाई
झलक दे ही जाती है
समुद्र की गहराई को
छुपाई नहीं जाती है
समझने वाले न हो
पीड़ा बताई और न
समझाई जाती है
दिल की बातें सदा
होंठों पे आ जाती है
झूठ के पेड़ उगते है
सच के सामने सदा
घुटने टेक ही देते हैं
दुखती रगों पर कोई
नमक छिड़क जाते है
अलविदा कहकर भी
जो पास आ जाते हैं
बेमुरब्बत प्यार को
जो समझ नहीं पाते है
इक ऐसे रिश्ते होते हैं
जो बेनाम कहलाते हैं।
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