मित्रता - डॉ इंदु कुमारी
मित्रता
सर्वोपरि सब रिश्तों में
कीमत न लेते किस्तों में
सार शब्द है मित्रता के
सार्थक पहलू है रिश्तों के
ईश्वर स्वरुप का हो दर्शन
मित्र का हो मार्गदर्शन
प्रकाशित होते हैं जीवन
सुकून के वो पावन क्षण
बेहतरीन से बेहतरीन होती
पल बड़ी हँसी हसीन होती
ज़िन्दगी कितनी करीब होती
चाह गई चिंता मिट जाती
खुशियों से दामन भर जाती
सार्थकता का बोध कराती
हम और तुम नहीं रह जाती
जानत तुम्हीं, तुम्हीं हो जाती
प्रेम की पराकाष्ठा नैसर्गिक
आलोकित आह्लादित होती
चरमोत्कर्ष सोपान कराती
सच्ची मित्रता यह सिखलाती।