हिन्दी बेचारी- डॉ. इन्दु कुमारी
हिन्दी बेचारी
राष्ट्र है मेरे अपने घर
भारती हूँ मैं कहलाती
जनमानस की हूँ सदा
सरल अभिव्यक्ति मैं
राजदुलारी जन सभा की
अवहेलना का दंश मुझे तो
आज तक बरबस झेलना
नियति हमारी सदियों से
बनती आ रही है, घर में
अकेली महिला की भाँति
प्रताड़ित होती आ रही है
पिता हमारे खेवनहार वो
नजर अंदाज़ है करते रहे
घर की बनकर रह गई चेरी
उपेक्षिता सी जिंदगी मेरी
जब कभी आवाज उठाई
विदेशी सौतन आगे आई
पद प्रतिष्ठा मिली उनको
शिकार होना पड़ा मुझको
क्या कहूँ घरवाले तुझको
विदेशी ने जब पैर पसारी
देखो कैसे बनायेबेचारी
देखो कैसे बन गई बेचारी
जन जागरण हम मिलकर
जागृति फैलाए ,लहराकर
जन सैलाब ,निकाले हम
कदम से कदम बढाए हम
चिनगारी अब धधक उठी
रोके ना रुकेगी ये जमाने
देखो ऐ देखो दुनिया वाले।