राधा की पीड़ा- डॉ हरे कृष्ण मिश्र

राधा की पीड़ा

राधा की पीड़ा- डॉ हरे कृष्ण मिश्र
चल केशव बरसाना जाना,
रूठ गयी जहां राधा रानी ,
वृंदावन को भूल गयी है ,
अपनों से भी रूठ गई है ।।

क्या केशव सोचा है तूने ,
इच्छा थी यशोदा माई की ,
सगाई तेरी होनी तय थी ,
बोलो प्रणय कहां खोया है ।।

बंसीवट में स्वर गुंजित है ,
तुमसे दूर कहां राधा है ,
प्रणय तुम्हारा बहुत दृढ़ है,
तुम से आगे नाम जुड़ा है ।।

प्रणय कथा कितनी सुंदर है ,
मिलन अंत से दृढ़ बनी है,
तेरे मन की पीड़ा को कह ,
कौन प्रकट कर पाएगा ।।

राधा कृष्ण की प्रणय कथा,
जग वंदन करता आया है ,
आरती कुंज बिहारी की ,
राधा जिसकी अपनी थी ।।

युग युग से पीड़ा है मन में ,
अंतर्द्वंद हमारा भी है ,
चल बरसाना मिल आते हैं,
बहुत दिनों से मन कहता है ।।

जीवन में संघर्ष बड़ा है ,
मिलन हमारा अंत हुआ है,
पीड़ा मेरी दर्द भरी है ,
चल केशव तेरे पीछे मैं ।।

मुक्ति का अब द्वार खुला है ,
मुझको द्वारिका पाल मिला ,
प्रणय मार्ग पर चलना है ,
मिलन हमारा बहुत निकट है।।

मिलन कामना जीवन की है ,
दर्द भरा जीवन पाया है ,
जीवन दर्शन केशव का है ,
मेरे पास कुछ बचा कहां है ।।

राधा की पीड़ा को केशव ,
तुझको ही सहलाना होगा,
धरा धाम की तेरी राधिका,
तेरी प्रतीक्षा में होगी ।।

अपने चक्र सुदर्शन से कह ,
उसकी रक्षा करनी होगी ,
धरा धाम की राधा रानी,
कभी न तुमसे दूर रहेगी ।।

मौलिक रचना
डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोकारो स्टील सिटी
झारखंड ।

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