उड़ान - डॉ. इन्दु कुमारी
January 06, 2022 ・0 comments ・Topic: Dr-indu-kumari poem
उड़ान
हम पंछी है धरा अंबर के
सपनों की हम भरे उड़ान
स्वच्छंद हो विचरण करूं
है हमें परिधि का ज्ञान
जुड़ी रही सदा जमीं से
आसमां है छत समान
मुँडेरों पर बैठ कलरव
गाती रहूं सदा जयगान
शिखर पताका फहराऊँ:
उर्वरा वसुन्धरा सी लहराऊँ
समता के संदेश पहुचाऊँ
जन मन करे प्रेम का ज्ञान
समरसता मानव जीवन में
निरीह जीवों पर दया दान
शिकार ना कर ऐ नादान
स्वतंत्रता का गाऊँ गान
हौसलों में आ जाए जान
सपनों की हम भरे उड़ान।
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