पैगाम - डॉ. इन्दु कुमारी
January 06, 2022 ・0 comments ・Topic: Dr-indu-kumari poem
पैगाम
ह्रदय को न बंजर होने देना
लगाओ प्रेम के पौधे भी
स्नेह से सींच -सींच करके
उगाओ प्रेम वाटिका भी
मिली सौगात में हमको
इश्क की कश्तियाँ भी
ये रब की ईबादत है
पराकाष्ठा शहादत भी
जीना हमें सिखाती है
सहिष्णुता भी लाती है
ये ज़िन्दगी भी बड़ी
मुश्किल से मिलती है
वक्त की बेड़ियां है तो
खुशबू है प्रेम का भी
संवेदना को न मरने दे
समरस सुगंध फैलाओ भी।
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