इन्सानियत के पक्ष में- जितेन्द्र 'कबीर'
January 15, 2022 ・0 comments ・Topic: Jitendra_Kabir poem
इन्सानियत के पक्ष मे
क्या तुम सीखना चाहते हो
खुद कई दिन भूखे रहकर
अनाज की कीमत समझना?
खुद पर कोई जुल्म करवाकर
उसकी पीड़ा को महसूस करना?
खुद किसी से ठगे जाकर
ईमानदारी की जरूरत समझना?
सिर्फ अपने अनुभव को ही
चाहोगे विश्व सत्य घोषित करना,
तो तुम्हारे लिए विकल्प खुला है
कि दुनिया में अब तक के
सभी स्थापित तथ्य को ठुकराओ,
खुद प्रयोग करो अपने ऊपर
और उनके निष्कर्ष से
दुनिया को बताओ,
मसलन किसी घातक सांप से
एक बार खुद को कटवाओ
और फिर उसके जहर के नुकसान
दुनिया को गिनवाओ,
गुरुत्वाकर्षण साबित करने के लिए
किसी सौ- दो सौ माले की बिल्डिंग से
कूद जाओ,
या फिर
थोड़ा अपनी बुद्धि का प्रयोग करो,
कुछ अपने अनुभव से सीखो
और कुछ दूसरों के अनुभव से सीख जाओ,
अन्याय हो रहा हो किसी दूसरे पर
तो उसके पक्ष में आवाज उठाओ,
खुद पर होगा तो देखा जाएगा सोचकर
अपना पल्ला न झाड़ जाओ,
गलत रास्ते पर चल रहा हो जो कोई
तो वक्त रहते उसे चेताओ,
वो सही रास्ते आए न आए
कम से कम तुम अपना फर्ज तो निभाओ,
मानता हूं कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में
ज्यादा से ज्यादा स्वयं केंद्रित
होती जा रही है मनुष्य की सोच,
लेकिन इन्सानियत एवं आदर्श समाज के पक्ष में
तुम दो चार नेक कदम आगे तो बढ़ाओ।
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