इश्क की इंतहा-जयश्री बिरमी

इश्क की इंतहा

इश्क की इंतहा-जयश्री बिरमी
प्यार हो ही जाता हैं गर हो जुत्सजू
जब इश्क हो ही जाता हैं रूबरू
जब हो जानिब वफा–ए–यार
क्यों न हो दीदार–ए–यार
ये तो वो मर्ज हैं यारों
जो हैं ला– इलाज
ज्यूं ज्यूँ खाओ दवाई
बढ़ता जाता हैं मर्ज– ए–इश्क
लाइलाज मर्ज को न जरूरत हैं
तावीज और हकीम की
इसकी तो तासीर हैं वफा
दीदार–ए– यार ही काफी हैं
इश्क की इंतहा के लिए

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद



Comments