चाह-तेज देवांगन
शीर्षक - चाह
हम जीत की चाह लिए,गिरते, उठते पनाह लिए,
निकल पड़े है, जीत की राह में,
चाहे कंटक, सूल, खार हो,
आए संकट विकार हो,
निकल पड़े हम जीत की राह में।
आए अगर वृहत महीधर,
तोड़ देंगे उसकी धड़,
बांट देंगे उसको हम कण कण,
सांस गर रुक जाए,
बाहुबल झुक जाए,
झुकेंगे नहीं, हम आखिरी दम तक,
चाहे शैल की चिंगारी हो,
इंद्र जैसे कटारी हो,
रुकेंगे नही हम आखिरी दम तक।।