हमारे लिए कितना प्रासंगिक हैं वेलेंटाइन डे?

हमारे लिए कितना प्रासंगिक हैं वेलेंटाइन डे?

हमारे लिए कितना प्रासंगिक हैं वेलेंटाइन डे?
क्यों किसी भी बात पर हम दिनों को तय कर उसे मानते हैं।जैसे बाल दिन,क्यों बच्चों को एक ही दिन के लिए महत्व दिया जाएं? हमारा भविष्य हैं जो,उन्हे तो हर दिन हर पल ,हर हिसाब से संभाला जाना चाहिए।शारीरिक,मानसिक,शैक्षणिक सभी पासो को संभाल उनका सर्वांगी विकास ही देश को एक अच्छा नागरिक दे सकता हैं।
ऐसे ही हम कुछ दिन मनाते हैं जिसे हम वेलेंटाइन डे जो आजकल एक सप्ताह के लिए मनाते हैं।जिसको हम थोड़े अलग तरीके से मनाते हैं।वेलेंटाइन डे के दिन सिर्फ प्रेमियों में नहीं मनाया जाता हैं, इसमें प्रेम संदेश हैं जो कोई भी रिश्ता हो उसी में मनाया जाना चाहिए, उसमें भाई– बहन हो,दो दोस्त हो, मां के साथ,पिता के साथ या कोई भी हो,पड़ोसी भी सकता हैं ,मनाया जाता हैं।उसे हम थोड़े संकीर्ण हो के गलत अंदाज से मनाते हैं या उसके मायने समझते हैं।उसे एक विस्तृत नजरिए से देखें तो सही मतलब में मनाया जा सकता हैं।
कभी चॉकलेट डे,भालू डे,हग डे और भी बहुत कुछ,लेकिन उसमे कहां हैं अपने शीरी– फरहाद,शशि–पुन्नू और लैला मजनूं जिन्होंने अपनी हस्ती मिटा दी अपने प्यार के लिए।ऐसे तो कई उदाहरण हैं जिनके प्यार के चर्चे सदियों से दुनिया में हो रहे हैं।सबसे पुरानी और प्रचलित प्रेम कथा तो राधा किशन की हैं।बचपन से जो प्यार पनपा था और एक प्रार्थना बनके पूजा जाने लगा।एक अप्रतिम भावनाओं से भरी हुई ये कथा सर्व वंदनीय हैं।जिसमें भक्ति हैं,समर्पण हैं,त्याग हैं और सबसे ज्यादा स्वार्थ रहित प्रेम जिसे गोप,गोपियों और गैयाओं के साथ भी जोड़ा और बांटा गया।जिसमे संगीत से की गई अभिव्यक्तियां अप्रतिम हैं।किशन की बंसी की तान सुनकर राधा के साथ साथ गोपियां, गायेंं,गोप,मोर,यहां तक की वन के वृक्ष भी नृत्य कर उठते थे ।यही तो प्यार की चरम सीमा थी किशन की लीला की।सभी को ही मंत्र मुग्ध करने वाले किशन और उसकी बाल लीलाओं से शुरू हुई प्रेम कथा निस्वार्थ थी।और उसी प्रेम ने रुकमणि के होते हुए भी किशन के साथ राधा की पूजा एक ऐसा उदाहरण हैं जो कहीं देखने नहीं मिलता।वहीं किशन का रुकमणि से प्यार भी उनके वैवाहिक जीवन की प्रेम कथा का वर्णन करता हैं।प्रेम वश रुकमणि का हरण कर के अपनी रानी बना के सिंहासन पर अपने साथ स्थापित करना एक चरम की प्रतीति करवाता हैं।
वहीं प्रेम में भक्ति की अनुभूति करवाने वाली मीरा को अपने किशन पर जो भक्ति भावना थी उसका तो कोई दूसरा उदाहरण मिलना मुश्किल हैं। मीरा ने किशन को प्रेम प्रतीक मन पूजा हैं,” मेरो तो गिरधर गोपाल दुर्सी न कोई”।जब मीरा को सांसार में लिप्त करने की कोशिश की गई तब मीरा ने उपरोक्त पंक्तियां कही थी।कितने दुःख सहे मीरा ने,यहां तक की जहर भी पी लिया और उसकी प्रेम भक्ति के बल पर वह विष भी अमृत बना और मीरा को मारने की सारी कोशिशें विफल हो गई ।
तो द्रौपदी के साथ जो किशन का सखा भाव था उसे भी हम जानते हैं। द्रौपदी के कष्ट के सभी समय पर हाजर हो हर समय पर उसे सलाह देने वाले सखा के साथ एक अप्रतिम रिश्ता जिसे कोई खास नाम नहीं दिया जाता किंतु एक ऐसा प्रेम हैं जिसने द्रौपदी को सहारा भी दिया और सलाह भी दी जिससे जिंदगी के सभी प्रश्नों के हल दैवी शक्तियों से संपन्न श्री कृष्ण से मिलता रहा।भगवान कृष्ण के साथ जिसने भी प्रीत की वे सभी उनके साथ साथ प्रात: स्मरणीय बने और पूजा की जाने लगी।
अब बताएं कहां जरूरत हैं हैं किसी खास दिन की,जहां हम किशन की पूजा रोज ही करते हैं।यहां तो अभिवादन में ही जय श्री कृष्ण,किशनजी की जय रोज ही बोला करते हैं वहीं समय हैं कि हम एक अप्रतिम सर्व व्यापी प्रेम की उपासना करते हैं।

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद
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