माँ
इंसान नहीं अब सामानों की ,फिक्र बस रह गई
तू ही बता ए जिंदगी , तू इतनी सस्ती कैसे हो गई ?जिस मां की लोरी सुने बिना
नींद ना हमको आती थी
खुद गीले में सोती
हमको सूखे में सुलाती थी
उस मां की खातिर ,अब घर में नहीं बिछौना है
तू ही बता ए जिंदगी,
तू इतनी सस्ती कैसे रह गई ?
जिसकी ममता की छाँव में पलकर
हम अंकुर से बीज बने
उसके नेह ,स्नेह को पाकर
हम मानुष गम्भीर बने
उस माँ की खातिर ,प्रेम हमारा क्यों बौना है?
तू ही बता ए जिंदगी,
जिसकी ममता की छाँव में पलकर
हम अंकुर से बीज बने
उसके नेह ,स्नेह को पाकर
हम मानुष गम्भीर बने
उस माँ की खातिर ,प्रेम हमारा क्यों बौना है?
तू ही बता ए जिंदगी,
तू इतनी सस्ती कैसे हो गई?
खुद लाचारी में काटी
जिंदगी दी हमें आराम की
बेचारी सी जीकर
चाबी दी हमें मकान की
उस माँ की खातिर देखो ,
खुद लाचारी में काटी
जिंदगी दी हमें आराम की
बेचारी सी जीकर
चाबी दी हमें मकान की
उस माँ की खातिर देखो ,
नहीं घर में कोई कोना है
तू ही बता ए जिंदगी,
तू ही बता ए जिंदगी,
तू इतनी सस्ती कैसे रह गई?
अर्चना चौहान
किरतपुर
जिला बिजनौर ,उत्तर प्रदेश
अर्चना चौहान
किरतपुर
जिला बिजनौर ,उत्तर प्रदेश
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