Sundar bachpan Raunak Agrawal
February 17, 2022 ・0 comments ・Topic: poem Raunak_Agrawal
सुंदर बचपन !!
सोनी सी मुस्कान है वो,
हर माँ की जान है वो !!ये बच्चे मन के सच्चे,
थोड़े कच्चे ,थोड़े पक्के !!
जब कभी रोने लगे, तो ये ममता इन्हें बहलाती है..
फिर प्यारी सी लोरी, और मीठी नींद आ जाती है !!
इस गोद में खेलते-खेलते, हमने बहुत कुछ सिखा,
गरीबो का दुख, और अमीरो का सुख देखा !
कभी ये सोचता था, ऐसा क्यों है हमारा जहां,
किसी को अच्छाई , तो किसी को बुराई की ओर फेका !!
संस्कारों की राह पर हमने चलना सिखा,
जीवन की सच्चाईयों को परखना सिखा ,
बिना झूठ के सहारा लिए,
अपनी बातें पर अड़ना सिखा।
यू तो सब कहते थे, मस्ती करो ,
बैर दूर कर, दोस्ती करना सिखा।
लडते, झगड़ते और कंचे गोली खेलते हुए बचपन निकल गया।
देर से ही सही, पर सही रास्ता मिल गया।
अब जा कर जीवन की अर्थ समझ में आई,
और मन में, कुछ करने की याद आई..!!
अब हम बड़े हो गए, कंधो पर जिम्मेदारी आई..
मन में तो ठानी ही थी, पर अब करने की बात आई !
यू तो सोच कभी घबरा जाता था ,
पर वो हाथ सर पर पढ़ते ही, मैं सो जाता था..!!
गुजर गए वो दिन, जब हम बच्चे थे,
थोड़े कच्चे, थोड़े पक्के थे।
याद आती है वो यारी हमें ,
कंचे ,गोली की कसम!
अगर ले चले, कोई अब भी हमें,
हम चलेंगे उसके संग...!!!
तो बच्चे सिखा जो आपने, अपने बचपन में,
करो जरा उस पर ध्यान !
एक जिम्मेदार नागरिक की मिसाल बनो तुम,
करके अच्छे काम...!!!
-रौनक अग्रवाल
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