आज के राजनायक

आज के राजनायक

आज के राजनायक
दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम” ये कहावत सार्थक हुई हैं सिद्धू के मामले में।
२००४ में शुरू हुई नवजोतसिंह सिद्धू का राजकीय सफर शुरू हुई थी। स्व. अरुण जेटलीजी ने उन्हें बीजेपी में में शामिल करवाया था।और उसी साल कांग्रेस के मातबर नेता श्री रघुनंदनलाल भाटिया को अमृतसर सीट से १ लाख मतों से हराया था।२००९ में भी सिद्धू की ही जीत हुई थी।२०१४ में कोई चुनाव न लड़ बीजेपी के स्तर प्रचारक बने रहे और राज्यसभा के सभ्य बने रहे।किंतु २०१७ में उनकी आदत के अनुरूप बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हो,पंजाब के मुख्य मंत्री पद प्राप्त करने की ख्वाहिश में ही ये निर्णय लिया गया था।
अब कांग्रेस में कैप्टन की साख काफी अच्छी होने की वजह से मंत्री बनाया गया जो सिद्धू को मंजूर नहीं था।कैप्टन के विरुद्ध अपना गुट तैयार कर कैबिनेट से २०१९ में इस्तीफा दे जोर शोर से कैप्शन के विरुद्ध प्रचार कर अपनी स्थिति मजबूत करने में लगे सिद्धू को १८ जुलाई को कांग्रेस के प्रादेशिक अध्यक्ष बनाया गया किंतु मुख्य मंत्री कैप्टन ही रहे जो सिद्धू की इच्छा के विरुद्ध का काम था।अब कांग्रेस में फुट डलवाके काफी सभयों को अपने समर्थन में खड़े कर हाई कमांड पर दबाव डालना शुरू किया और परिणाम स्वरूप कैप्टन को सभी जगह अनदेखा किया जाने लगा और फिर कैप्टन ने हार कर सख्त निर्णय ले अपना इस्तीफा दिल्ली भेज दिया।और आ गया राजकीय भूचाल,पंजाब और कांग्रेस दोनों में।किंतु आला कमान ने सोचा कि सब ठीक हो गया और सिद्धू शांत बैठ जाएगा जब चरणसिंह चन्नी जो दलित समाज से आते हैं उन्हे मुख्य मंत्री बनाया गया जिससे दलित समाज को विश्वास में लिया गया जो तीन महीने बाद आने वाले चुनाव में कांग्रेस को फायदा हो,सिद्धू ने सोचा कि चन्नी के नाम पर खुद फैसले ले कर राज करेंगे,लेकिन चन्नी साब का अपना मिजाज था और अपने निर्णय खुद ले सिद्धू की राय न ली और कोई भी निर्णय में राय लेने की परवा की।सिद्धू ऐसे ही आहत हो गए और मझधार में ( पंजाब में चुनाव पास में है तब) नैया छोड़ दी। आज पंजाब में राजकीय जलजला आया हुआ हैं,दो हिस्से में बटी कांग्रेस में आरोप प्रत्यारोप की बौछार लगी हुई है।
अब आला कमान भी सिद्धू से नाराज हैं बात चीत की शक्यता कम ही नजर आती हैं। देखें इन सब का क्या नतीजा आता हैं।
क्रिकेट में भी सिद्धू का सफर कुछ ऐसा ही था।उनकी चौकाने की आदत तब भी थी जैसे आज भी हैं। १९८७ में वर्ल्ड कप में शानदार बैटिंग करी थी। उसके कुछ महीने बाद वेस्ट इंडीज के प्रवास में भी अपने को घायल जाहिर कर सीरिज से बाहर हो गए थे,जब की उस वक्त फास्ट बॉलरों के सामने सिद्धू जैसे मजबूत ओपनर की खूब जरूरत थी।१९९६ में भी भारतीय टीम का इंग्लैंड प्रवास में सिद्धू भी टीम में थे लेकिन मैच आधे में छोड़ बिना कोई इत्तला देश वापस आ गये और बीसीसीआई को जांच कमिटी बनानी पड़ी थी।इस के बात सिद्धू एक भी मैच खेले नहीं हैं।
वही सब अभी भी दिख रहा हैं।पंजाब कांग्रेस भवन में बहुत सारे बदलाव किए ,कॉन्फ्रेंस रूम बनाया और बयान दिया कि वह वहीं पर बिस्तर लगा दल की से में हर वक्त हाजर रहेंगे किंतु जब से दल प्रमुख बनाए जाने के बाद ,इतने महीने में १५ दिन भी दल के कार्यालय में नहीं बिताए हैं,अभी कॉन्फ्रेंस कक्ष की कुर्सियों पर से प्लास्टिक भी ज्यों का त्यों हैं।अब जब चुनाव पास आ रहे हैं तो कुटिल राजनीति के दांव शुरू हो चुका हैं।कैप्टन अमरिंदर सिंह तो कांग्रेस से बाहर हो गए किंतु अभी भी जो बवाल उठा था वह वैसा ही हैं जो सिद्धू के कांग्रेस में शामिल होते ही शुरू हो गया था।क्या कांग्रेस मुख्य मंत्री का नाम जाहिर करे ऐसा दबाव हैं या ऐतिहासिक गलती नहीं हो उसका ध्यान रखा जा रहा हैं।कांग्रेस के पास सब कुछ होने के बावजूद एक बहुत बड़ी ताकत हैं,कोई भी छोटी बात को तोड़ मरोड़ कर बड़ी बना अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मरना एक आदतन वाकया बनता जा रहा हैं।एक जमाने ने कांग्रेस हमेशा जीतती थी जैसे गुजरात,गोवा आदि।लेकिन मतदाता के लिए बीती बातों को याद करने से ज्यादा अभी कौन जीतेगा ,और उसी को जीतते हैं।एक के बाद एक गलती करके पंजाब में परिस्थितियां बिगड़ती जा रही हैं।अब जब पार्टी मुख्य मंत्री का चेहरा जहीर करतीहैं तो उनके पास विकल्प हैं,चरणजीत चन्नी, नवज्योतसिंह सिद्धू और पार्टी कोई चेहरे के बगैर ही चुनाव लडे।अगर चैन्नी का नाम जाहिर होता हैं तो दल में हड़कंप का आना तय ही हैं।अगर सिद्धू का नाम जाहिर होता हैं तो दलित मत पर असर हो सकता हैं।सिद्धू की तो दल में आने का मकसद ही मुख्य मंत्री पद था जिसने अमरिंदरसिंघ जैसे कद्दावर नेता की बलि ले ली लेकिन इतनी जहमत के बाद भी कुछ हासिल नहीं हुआ सिद्धू को,खाया पिया कुछ नहीं ,ग्लास तोड़ा बारह आना।अभी भी मां वैष्णो देवी के दर्शन करने जा कर प्रश्न करते हैं कि पंजाब में कैसा मुख्य मंत्री चाहिए ,जनता की पसंद या हाई कमान की पसंद?इशारों में सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने के जैसी बाते करके सब के उपर दबाव लाने की कोशिश करना भी उनके चरित्र का एक पहलू हैं।उनकी भाषा और वर्तन की कोई प्रिडिक्टशन नहीं हो सकती।कोई भी राज्य ऐसा नहीं जहां कांग्रेस के ऊपरी नेताओं के बीच मतभेद या जगड़ा न हो,जैसे राजस्थान हैं।
लेकिन आप से थोड़ा हरिफ होने के बावजूद लोग उन्हे पसंद नहीं करे क्योंकि अगर आप जीती तो हो सकता हैं केजरीवाल मुख्य मंत्री बन जाएं । पंजाब के बाहर से आके कोई मुख्य मंत्री बने ये पंजाब के लोगों को मंजूर नहीं हो।
वैसे पंजाब में प्रांतीय प्रश्न काफी जटिल हैं,जिसमे ड्रग की तस्करी मुख्य हैं।जिसे कंट्रोल करने में सक्षम सरकार आए ये लोकल लोग चाहेंगे।गैंगस्टर का भी प्रश्न हैं लेकिन अभी तो सब चुनावों में व्यस्त हो सब अपनी अपनी और से विश्लेषण कर रहें हैं
ये जो पंजाब में हुआ उसे यादवास्थली भी कह सकते हैं जैसे यादवों ने आपस में लड़ लड़ कर खुद को खत्म कर लिया था वैसा ही सब नज़र आ रहा हैं।

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद


Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url