वैश्विक पर्यावरण चुनौतियां!!
जलवायु न्याय प्राप्त करने संसाधनों के उपयोग के प्रति दृष्टिकोण सचेत और सुविचारित बनाम विचारहीन तथा विनाशकारी
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने वैश्विक नियमों का पालन करना समाधान की सही राह- एड किशन भावनानी
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर हम कुछ दशकों से देख रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण, प्राकृतिक आपदाओं के दुष्परिणामों से हर देश प्रभावित हो रहा है। कहीं तूफ़ान, भारी बारिश, भूकंप, आग, भूस्खलन जैसी अनेक प्राकृतिक आपदाओंं की मात्रा में वृद्धि हुई है।हालांकि यह आपदाएं विपत्तियां सदियों पहले भी आती थी परंतु जिस तेज़ी से वर्तमान परिपेक्ष में इन विपत्तियों के दुष्प्रभाव नें पूरे विश्व के सामने आकर त्रासदी से नागरिकों को त्रस्त कर दिया हैं पहले शायद ही विश्व इस त्रासदी से इतनी गंभीर अवस्था से गुजरा हो!!!
साथियों बात अगर हम इस वैश्विक पर्यावरण चुनौतियों और जलवायु परिवर्तन की त्रासदी की करें तो इसकी जिम्मेदारी का श्रेय सृष्टि में सबसे बुद्धिमान प्राणी मानव को देने में अतिशयोक्ति नहीं होगी!!! क्योंकि मानव की अपार अपेक्षाओं, आकांक्षाओं और विकासके जुनून ने पर्यावरण का ऐसा गणित बिगाड़ा है!!! कि उस के प्रकोप से मानव स्वयं विपत्तियों के घेरे में लिपट गया है!! अब इस त्रासदी से बचने, तेजी से उपाय के ताने-बाने बुंनने पर मानव मज़बूर हो गया है!! ताकि इस सृष्टि को अपनी आने वाली अगली पीढ़ियों के लिए जीवन जीने योग्य सुरक्षित बचा सके!!
साथियों बात अगर हम वैश्विक पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने की करें तो हमें जलवायु न्याय प्राप्त करने, संसाधनों के उपयोग के प्रति अपने दृष्टिकोण को उचित और सुविचारित करना होगा न कि विचारहीन और विनाशकारी!! अगर हमें वैश्विक पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से मुकाबला कर इसका समाधान करना है तो पूरे विश्व के मनीषियों को पर्यावरण व जलवायु के वैश्विक नियमों, पेरिस जलवायु समझौते के अनुसार अपनीं जीवन शैली में परिवर्तन लाने, कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी लाने के अपने मजबूत प्रतिबद्धता और संकल्प को अति गंभीरता से निभाना निभाना होगा तभी हम इन प्राकृतिक चुनौतियों से मुकाबला करके समाधान कारक स्थितियों, परिस्थितियों में पहुंचने योग्य होंगे और अपनी अगली पीढ़ी को सुरक्षित जीवन प्रदान करने तथा अगली पीढ़ी के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के कड़वे सवालों के घेरे से बच पाएंगे!!
साथियों बात अगर हम इस संबंध में अन्तर्राष्ट्रीय बैठकों, सम्मेलनों, वेबीनारों की करें तो पिछले दो सालों से कोरोना महामारी की गंभीर त्रासदी के बावजूद इस दिशा में वर्चुअल सम्मेलन के हस्ते सकारात्मक मंथन हुआ है। जिसमें ग्लास्गो कॉप-26, विश्व टिकाऊ विकास सम्मेलन 2022, पूर्व में पेरिस समझौता, ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी) का सतत विकास शिखर सम्मेलन अभी हाल ही में हुए प्रयास है।
साथियों बात अगर हम ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टेरी) के 16 फरवरी 2022 को आयोजित एक वार्षिक प्रमुख कार्यक्रम टिकाऊ विकास सम्मेलन 2022 के 21 वें संस्करण की करें तो पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की पीआईबी के अनुसार केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने अपने संबोधन में जोर देकर कहा कि जलवायु परिवर्तन सहित वैश्विक पर्यावरण चुनौतियों का समाधान करने के लिए, हमें अब अनिवार्य रूप से समानता तथा समान लेकिन विभिन्न जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए सहमति प्राप्त वैश्विक नियमों पर कार्य करना चाहिए।
पेरिस समझौता के लक्ष्यों को तब तक अर्जित नहीं किया जा सकता है जब तक कि सभी देशों द्वारा वैश्विक कार्बन बजट के उचित हिस्से के भीतर रहते हुए इक्विटी को कार्यान्वित न किया जाए। हमारा लक्ष्य न्यायसंगत सतत विकास तथा जलवायु कार्रवाईयों में निष्पक्षता होनी चाहिए। केवल तभी ‘जलवायु न्याय प्राप्त किया जा सकता है। पर्यावरण को बचाने की गहन आवश्यकता पर विचार करते हुए उन्होंने रेखांकित किया कि हालांकि औद्योगिक क्रांति से देशों में समृद्ध आई है, पर इसके कारण पर्यावरण को भारी नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रतिकूल प्रभावों के बावजूद, भारत ने वास्तव में अपनी जलवायु महत्वाकांक्षा में वृद्धि की है। भारत विश्व में सबसे महत्वाकांक्षी स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तनों की अगुवाई कर रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि संसाधनों के उपयोग के प्रति दृष्टिकोण अनिवार्य रूप से ‘सचेत और सुविचारित उपयोग' न कि ‘विचारहीन तथा विनाशकारी' होना चाहिए। एलआईएफआई (लाइफस्टाइल फॉर द इनविरोनमेंट) जिसका भारत के पीएम ने ग्लासगो में सीओपी- 26 में अनावरण किया था, के लक्ष्य को विश्व द्वारा अपनाया जाना चाहिए जिससे कि मानवता तथा ग्रह की रक्षा हो सके। उन्होंने कहा, जिन्होंने विश्व को गलत दिशा में ले जाने में सबसे अधिक योगदान दिया है, उन्हें ही अनिवार्य रूप से स्थिरता के मार्ग पर वापस लाने के लिए सर्वाधिक प्रयास करना चाहिए।
अपने संबोधन में समानता की आवश्यकता के साथ करते हुए, उन्होंने कहा कि विकसित देशों को अनिवार्य रूप से अपनी ओर से समुचित महत्वाकांक्षा के साथ प्रत्युत्तर देना चाहिए तथा निश्चित रूप से अपने दोनों वादों- अपनी जीवनशैली में परिवर्तन लाने के जरिये उत्सर्जन में भारी कमी लाने तथा विकासशील देशों को अधिक वित्त तथा प्रौद्योगिकीय सहायता उपलब्ध कराने- को पूरा करना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत के समावेशी तथा टिकाऊ वृहद -आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है कि देश के अनुकूलन तथा शमन दोनों ही उद्देश्यों को, हमारे लोगों की आकांक्षाओं तथा आवश्यकताओं के बड़े लक्ष्य के भीतर समान तथा न्यायोचित तरीके से पूरा किया जाए। उन्होंने कहा कि हमारे नवीनतम आम बजट ने इस मार्ग का अनुसरण करने के हमारे दृढ़ संकल्प की पुष्टि की है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि वैश्विक पर्यावरण चुनौतियां!!जलवायु न्याय प्राप्त करने संसाधनों के उपयोग के प्रति दृष्टिकोण सचेत और सुविचारित रखना होगा न कि विचारहीन तथा विनाशकारी!! बल्कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने वैश्विक नियमों का पालन करना ही समाधान की सही राह होगी।
-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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