नारी- डॉ. इन्दु कुमारी
नारी
क्या है तेरी लाचारी
क्यों बनती तू बेचारीरिश्तो को निभाती आई
जैसे बदन को ढकती साड़ी
नारी !नारी!!ओ नारी
स्व को मिटाने वाली
स्नेह को बरसाने वाली
पौधों सी तू परोपकारी
प्रेम में तू सदा हारी
नारी !नारी !!ओ नारी
आंँचल की छाया देने वाली
बत्तीसौ सुवा (धार) दूध पिलाने वाली
ममता सदा लूटाने वाली
क्या यही है तेरी कहानी
जहां कोई करे मनमानी
हार सदा तू क्यों मानी
जरूरत पड़े प्रेम बरसाओ
हैवानियत पर चप्पल उठाओ
अगर दामन है बचानी
नारी है कुल को ताड़ी
लांछन लगाए गर व्यभिचारी
साजिश की शिकार होती आई
मुंह तोड़ जवाब दे भारी
अंदर में है अपार शक्ति
झांककर तो देख प्यारी
झांसी की रानी बन जा
दिखा दे निज शक्ति सारी
नारी !नारी !!ओ नारी।