कहानी -खत्री बहन जी

खत्री बहन जी (hindi stories)

कहानी -खत्री बहन जी
इसी नाम से मुहल्ले के बच्चे व बड़े उसे जानते थे । मुहल्ले के पश्चिमी किनारे पर उसका घर था ,रेलवे स्टेशन से सौ मीटर पहले । पर उसका आना जाना हमारे घर के सामने की सड़क से ही होता था ,बाजार जाना इसी सड़क से होता था ।
वह मुहल्ले की सड़क से जब भी गुजरती ,बच्चे उसकी ओर दौड़ पड़ते थे।

खत्री बहन जी कंधे पर टंगे थैले से मुट्ठी भर लेमनचूस की मीठी गोलियां निकाल कर बच्चों मे बाँटती हुई अपने घर.पहुँचती थी ।इस कारण बच्चे उसे देखते ही दौड़ पड़ते थे ।
यह कोई एक दो दिन की बात नहीं थी ।यह उसकी रूटीन मे था ।कंधे पर थैला टांगना उसकी पहचान बन गई थी ।
खत्री बहन जी राजकीय महिला विद्यालय में हिंदीअध्यापिका थी। इस कारण पढने वाले बच्चे उनको बहन जी संबोधित करते थे ।उन बच्चों की देखा देखी सभी बहन जी कहने लगे ।
बहन जी केवल इस कारण नहीं लोकप्रिय थीं बल्कि इस कारण भी वह मुहल्ले के बच्चों को घर बुलाकर बिना कुछ लिए ट्यूशन भी करती थीं।.
खत्री बहन जी के पिताजी राजकीय विद्यालय मे आर्ट मास्टर रहे हैं ।उनका इसी मुहल्ले मे पैत्रिक मकान था ।वे भी अपनी सज्जनता के लिये मुहल्ले मे जाने जाते थे ।
मास्टर साहब की सात.लड़कियां थीं ,लड़का कोई नहीं हुआ ।इस कारण वह समाज मे दबे दबे रहते थे ।
लड़कियों मे कोई कमी नहीं थीं ।सभी गोरी व सामान्य कद काठी की थीं जैसे आम खत्री परिवार की लड़कियां होतीं हैं ।
खत्री बहन जी उनमें सबसे बड़ी थीं औऱ सबसे सुन्दर ,घुंघराले छितराये बाल उसकी खूबसूरती मे चार चांद लगाते थे ।
वह बीस के लगभग हुई तो मास्टर जी उसकी शादी की सोचने लगे । पर वह अपने पिता की जिम्मेदारी मे हाथ बँटाना चाहती थी। मास्टर जी की तनख्वाह कोई बहुत ज्यादा तो थी कि सबकी शादी इज्जत से करा सके ।यही सब देख कर खत्री बहन जी ने भी अध्यापिका की नौकरी कर ली।
उसने यह मन मे यह
निर्णय कर लिया कि एक बेटे की तरह बहनों की जिम्मेदारी वह उठायेगी ।यह बात अपने पिता के सामने उसने एक दिन रख भी दी कि दो तीन छोटी बहनों का विवाह पहले हो जाय तो फिर वह अपने बारे मे सोचेगी ।
.. उसके इस निर्णय के बाद मास्टर जी ने दो पुत्रियों की शादी कर भी दी ।पर.इसके बाद खत्री बहन जी अपने बारे मे कोई निर्णय नहीं ले पायी ।
मास्टर भी रिटायर हो गये ।घर का खर्च पेंशन से चलने लगा ।औऱ खत्री बहन.जी का पूरा वेतन बहनों की शादी के लिये बैंक मे जमा होने लगा ।
यही सब करते करते खत्री बहन जी की उम्र तीस पार हो गई ।उसने अब अपनी शादी का ख्याल ही मन से हटा लिया।
बातचीत मे सबके सामने कहने लगी,क्या बेटी बेटे की तरह फर्ज नहीं निभा सकती ।उनमें क्या कोई फर्क होता है ।
उसने धीरे धीरे यह करके भी दिखा दिया । उसके त्याग व समर्पण से सभी बहने अपने ससुराल पहुंच गई ।पर यह जिम्मेदारी पूरी करते करते खत्री बहन जी उम्र के ढलान पर पहुंच गई । प्रोढ़ता उसके चेहरे पर झलकने लगी थी ।
वह मुहल्ले की सड़क से गुजरती तो सभी इज्जत की नजरों से उसे देखते ।बच्चे उसे नमस्ते करते तो उन्हें वह पढ़ने मे मन लगाने की सीख देती थी ।
इसतरह उसकी छवि बच्चों मे मास्टरनी की बन गई।फिर वह बच्चों मे घुले रहने के लिये थैले मे लेमनचूस रखने लगी और हर बच्चे को बुला बुला कर लेमनचूस देने लगी ।.......
ऐसे ही चलती रही खत्री बहन जी की जिन्दगी की सफर ।
वह दिन भी आया जो हर नौकरी करने वाले के लिये फिक्स रहता है ।निश्चित समय पर खत्री बहन जी रिटायर हो गई ।
रिटायर मेंट के समय अच्छी खासी रकम के चेक भी मिले जिसे उसने बैंक खाते मे जमा कर दिये ।
खत्री बहन जी के आँख मे चश्मा चढ़ चुका था।बालों मे सफेदी दस्तक दे चुकी थी ।
साल दर साल बीतने लगे ।
मैं अपना मोहल्ला ही नहीं शहर छोड़ चुका था । पर होली दिवाली मे घर जाने से अपने शहर मोहल्ले से जुड़ाव बना रहा ।

हालांकि बहुत कम अवधि के लिये घर आने के कारण कई बार उनके बारे मे हालचाल नहीं मिल पाती थी ।
मुहल्ले की सड़क से उनका गुजरना भी बहुत कम हो गया था ।
दीवानी कचेहरी मे मेरा किरायेदारी का मुकदमा चल रहा था ।ऐसे ही एक तारीख पर मैं कचेहरी गया था ।
कचेहरी मे मेरे साथ पढे हुये वकील मित्र भी थे ।उनसे मिलने पर कुशल क्षेम पूछना बातचीत का हिस्सा होता है । सो सहपाठी रहे तिवारी वकील सामने बैठे दिखे तो मैंने बढ़कर हाथ मिलाया औऱ बगल की कुर्सी पर बैठ गया ।
बात का सिलसिला शुरू करते हुये मैं ने कहा, "तिवारी जी वकालत कैसी चल.रही है ।"
तिवारी जी बोले , "कोई खास आमदनी नहीं होती ,आप हमसे अच्छे हैं रेलवे की नौकरी मे ।"
" शहर तो छूट गया रेलवे की नौकरी मे ,आप कम से कम अपने शहर मे रह रहे हैं," मैंने कहा । फिर मैंने पूछा , "कितने बच्चे हैं ।"
" पांच लड़कियां हैं ", तिवारी जी बोले ।
लड़का कोई नहीं ,मैंने जानना चाहा। फिर बिना उत्तर मिले पूछा ," किसी बेटी की शादी हुई है । रुपये पैसे के प्रबंध मे समस्या तो नहीं हुई ।"
" नहीं, पहली पुत्री का कन्या दान व पूरा खर्च खत्री बहन जी ने वहन किया है ।....आपके मुहल्ले मे तो रहतीं हैं ।"
मैं सोचने लगा ।बेटियां पढ लिख कर चाहे तो बहुत कर सकती हैं , खत्री बहन जी इसका जीता जागता उदाहरण थीं शहर मे ।
# शैलेन्द्र श्रीवास्तव ।
(कवि, कहानीकार व इतिहासकार )
6 A-53,वृंदावन कालोनी
लखनऊ -226029
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