भक्ति और कीर्तन का बाधक कॉविड 19
जयकारे के बाद जो कीर्तन शुरू हुए वह भक्ति भावों से भरपूर थे,सभी कीर्तन कारियों के मन के भाव उभर उभर कर आते गए थे।कोई अपने शब्दों को माता रानी के सिंगार के लिए सजाते,तो कोई उन्हे खिलाने और बिठाने का इंतजाम करने के कीर्तन करते।बस हर तरफ माता रानी के बखान और उन की सुंदरता के ही बखान थे।लेकिन को प्रत्यक्ष कीर्तन करके आनंद आया उसका कोई जवाब ही नहीं हैं।सब ही ढोलक की ताल पर छैने और मंजीरे बजाते थे और मैं तो दोनों हाथों से करताल बजा रही थी और साथ में माता रानी की भेंटे गा रही थी।एक मीरा बाई और नरसिंह मेहता का एहसास आ जाता था।कीर्तन में भावपूर्ण शब्दों में डूब से गए थे सभी।एक के बाद एक कीर्तन शुरू हो राहें थे आज दूसरा दिन था तो सब को ही थोड़ा आत्मविश्वास बढ़ गया था पहले दिन की जीजक खत्म हो चुकी थी।ऐसे ही तीसरे दिन और खुलके मातारानी की पूजा अर्चना और कीर्तन किए ये माता रानी की ही कृपा थी।हमारी एक सत्संगी करोना का ग्रास बन गई थी जिसे मौन धारण कर शांति प्रार्थना की गई ।
फिर तो भोग लगा और आरती भी हो गई मतारानी का तीसरा नौराता पूरा किया–
जयकारा शेरावाली दा
सांचे दरबार की जय।
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद
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