बंद कमरों की घुटन-सुधीर श्रीवास्तव
बंद कमरों की घुटन
आधुनिकता की अंधी दौड़ में
हमने खुद ही खुद को कैद कर लिया है
कंक्रीट के घुटन भरे कमरों में।
खुली हवा में हमें अब साँस लेना भाता नहीं।
हम अपने ही हाथों उजाड़ रहे जंगल
पेड़ पौधे वनस्पतियां और
मिटाने पर आमादा हैं हरियाली का अस्तित्व।
वीरान हो रहे गांव गिरावट
जो बचे हैं कुछ कथित गरीबों सुविधाहीनों के लिए
वहां भी आधुनिकता का राक्षस तांडव कर रहा है,
शहरी संस्कृति से दो दो हाथ कर रहा है।
अब हर ओर घुटन ही घुटन है
क्योंकि हम आदी हो रहे हैं
घुटन भरे माहौल में,बंद कमरों में,
क्योंकि हमें प्रकृति पर भरोसा जो नहीं रहा
या यूं कहें हमने ही प्रकृति को दुश्मन समझ लिया।
कृत्रिमता से खुद को जोड़ लिया,
घुटन भरे बंद कमरों में जीने का फैसला
खुद हमने आपने जो कर लिया है।