धूप छांव
May 16, 2022 ・0 comments ・Topic: Jayshree_birmi poem
धूप छांव
जिंदगी के रूप कई कहीं मिले धूप छांव
आती दुःख की धूप तो सुख की छांव भी अपारआनी जानी हैं ये माया तुम हो या हो हम
कभी कभी हंसी के फुहारे कभी बहे गुम के आंसू
सुख में जो न बहके दुःख में टूटे न कोई
तो जीवन बने सफल टूट न जाएं कोई
सुख सुविधा चाहे सब मिले जो नसीब में होई
सदा सुख तो होवे नहीं दुःख भी न हरदम होई
रब जी भी हैं दयावान किंतु कर्म फल ये होई
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद
(स्वरचित)
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