किस दिशा में जा रहे है हम

"किस दिशा में जा रहे है हम"

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

"नहीं देखी ज़हर की नदियाँ कहीं, पर आज हर इंसान की वाणी से बह रही ज़हरीली बोली से समुन्दर भर गया है ज़हर का हर दिल और दिमाग में, कल तक इंसान को इंसान से बैर था आज भगवान भी दुश्मन लग रहे है एक दूसरे के"
 
ये किस दिशा में जा रहे है हम? हमारे विचार और हमारी सोच पंगु हो गई है शायद, जो किसी ओर की विचारधारा का अनुकरण करते हम मानवता और मर्यादा भूलते जा रहे है। नेताओं के भड़काऊँ भाषणों से प्रभावित होते वाणी और वर्तन में ज़हर घोल रहे है। देश में धर्मांधता और कट्टरवाद सीमा लाँघ रहे है। जात-पात के नाम पर लोगों की एक दूसरे के प्रति नफ़रत बढ़ती जा रही है। सरकार, मिडिया, समाज और लोगों की मानसिकता गिरते-गिरते निम्न स्तरीय होती जा रही है। औरंगजेब तो कट्टरपंथी था ही पर आज जो हो रहा है वह आपको उसी की ही जमात में बिठा रहा है। उसने मंदिर तोड़ कर हिन्दुत्व का अपमान किया था, आज आप मस्जिदें तोड़ कर इस्लाम का अपमान कर रहे है। महज़ बदला पूरा कर रहे है।
अब हद हो रही है सोशल मीडिया पर भगवान को तमाशा बना दिया है। हिन्दु मुसलमान को कोस रहा है और मुसलमान शिवलिंग के बारे में जो गंदी और हल्की कमेन्टस दे रहे है उसे देखते हुए लगता है की इंसान अपनी इंसानियत खोते हुए हैवान और पशु की श्रेणी में जाकर बैठ गया है। कम से कम एक दूसरे के आराध्य का कुछ तो सम्मान करो। सिर्फ़ भजनों में ईश्वर अल्लाह एक है गाने से आप धर्मनिरपेक्ष नहीं बन जाते धर्मनिरपेक्षता अपनी सोच में होनी चाहिए।
सालों और सदियों बाद मंदिर, मस्जिद के भीतर की कहानियों को कुरेदते सियासतों ने अपना उल्लू सीधा करने के लिए लोगों के मन में धर्म नाम का ऐसा बीज बो दिया है, कि कट्टरवाद पनपते वटवृक्ष बन चुका है। देश को खोखला करने वाले असंख्य मुद्दों से भटक गई है सरकार पोप्यूलेशन, महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और चिकित्सा के कई मुद्दे धरातल होते दम तोड़ रहे है। मंदिर मस्जिद से पेट नहीं भरता युवा पीढ़ी भटक रही है हाथ पर डिग्रीयाँ लिए उन्हें नौकरी दो, आम इंसान महंगाई से जूझ रहा है उसे राहत दो, शिक्षा कितनी महंगी हो गई है उस पर ध्यान दो, मैडिकल और दवाईयों के भाव आसमान छू रहे है उसका हल निकालो, जन संख्या नियंत्रण पर अमल करो तभी देश उपर उठेगा। गेहूँ के दाम बाप रे बाप तेल खाने वाला हो या वाहनों में ड़ालने वाला महंगाई की चरम छू रहा है नींबू जैसी चीज़ के भाव क्या कहना, पर किसको पड़ी है।
साथ में अवाम को भी समझना चाहिए धर्मं और जात-पात के नाम पर लड़वाने वालों की बातों में आकर गुमराह मत होईये। एक दूसरे के ईश्वर का सम्मान करें और एक बनें। जब लोगों के मन से वैमनस्य छंटेगा तभी देश को बांटने वालों के दिमाग ठिकाने पर आएगा। अपने दिमाग का इस्तेमाल कीजिए और धर्मनिरपेक्षता हकीकत में अपने जीवन में उतारिए। सबको अपने ईश्वर पर गर्व और नाज़ होता है हर धर्म का सम्मान करना चाहिए धर्म की रक्षा कीजिए ईश्वर आपकी रक्षा करेगा।
देश को आगे ले जाएगी भाईचारे और अमन की भावना, एक दूसरे के प्रति प्यार सम्मान और अपनेपन का अहसास। जात-पात में कुछ नहीं रखा सब इंसान है, समानता का भाव रखिए। न्यूज़ चैनल वाले अपनी-अपनी रोटियां शेक रहे है क्यूँ उनकी बनावटी बातों में अपना वक्त बर्बाद करते एक दूसरे के उपर कीचड़ उछाल रहे है। चैनल वाले एक टाॅपिक को खिंच तानकर लंबा करते मरी मसाला ड़ालकर आपके सामने ऐसे मुद्दें परोस रहे है कि आपकी धार्मिक भावना आहत हो, धर्म गुरुओं को बिठाकर लड़वाते है, आप उत्तेजित हो जाते हो, और पर्दे के पीछे वह सब साथ बैठकर चाय नास्ता कर रहे होते है।
आप उत्तेजित हो वही चाहते है सियासती साज़िश रचने वालें और चाहते है कि आप जात-पात और धर्मांधता में उलझे रहो कोई सवाल न करो। पर अपनी सोच का सम्मान कीजिए और सोचिए की हम कहाँ जा रहे है। अगली पीढ़ी को हम क्या देना चाहते है। मत लड़िए धर्म के नाम पर। नेक बनें, एक बनें और सही दिशा का रुख़ करते खुद का विकास करें और देश की अखंडता बनाएं रखें।
खासकर ये बात युवाओं को समझनी होगी आप देश का भविष्य हो, आगे जाकर आपको देश संभालना है। कैसा देश चाहते हो ये आपको तय करना है, किसीके बहकावे में न आकर देश को बांटने वाली गतिविधियों से दूर रहो। कह दो भड़काने वालों से हमें दंगे फ़साद नहीं नौकरी चाहिए, रोटी चाहिए, शांति चाहिए सर ज़मीं पर अमन चाहिए।
 
भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

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