क्यूँ न सतयुग की ओर कदम बढ़ाएं

 "क्यूँ न सतयुग की ओर कदम बढ़ाएं"

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् , धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे" गीता में श्री कृष्ण ने कहा है जब जब धर्म का नाश होगा और अधर्म का आचरण होगा तब-तब में पृथ्वी पर अवतार लूँगा। शायद हमें तो कृष्ण का सानिध्य प्राप्त नहीं होगा क्यूँकि अभी कलयुग का पहला चरण अवनी पर पड़ा है, घोर कलयुग कि तरफ़ कुछ दरिंदों की मानसिकता बढ़ रही है। पर हम उस दौर को वापस लाने की कोशिश तो कर सकते है।

क्या सद्आचरण इतना कठिन है? क्यूँ कालजयी होते हमसे छूट गया और आहिस्ता-आहिस्ता हम मनुष्य गुणों से विमुख होते पशुता को अपनाने लगे। कहा जाता है कि सतयुग में लोगों की प्रकृति शांत, सौम्य और सहनशील थी। अध्यात्म अणु-अणु में था और सद्व्यवहार से सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करते जीते थे। आज समाज में जो घटनाएं घटित हो रही है क्या ये घोर कलयुग को इंगित नहीं कर रही? शास्त्रों की मानें तो कलयुग का जो वर्णन शास्त्रों में किया गया है हूबहू कुछ-कुछ ऐसे ही अंश आज के युग की दुन्यवी गतिविधियों में देखने को मिल रहे है। 

कलयुग का वर्णन कुछ यूँ किया गया है कि कलियुग के पांच हजार साल बाद गंगा नदी सूख जाएगी और वापस वैकुण्ठ धाम लौट जाएगी। जब दस हजार वर्ष हो जाएंगे तब सभी देवी-देवता पृथ्वी छोड़कर अपने धाम लौट जाएंगे। इंसान पूजन-कर्म,व्रत-उपवास और सभी धार्मिक काम करना बंद कर देंगे। और

एक वक्त ऐसा आएगा, जब जमीन से अन्न उपजना बंद हो जाएगा। ऋतुएं बदलने लगेगी, पेड़ों पर फल नहीं लगेंगे। धीरे-धीरे ये सारी चीजें विलुप्त हो जाएंगी। गाय दूध देना बंद कर देगी। समाज हिसंक हो जाएगा, जो लोग बलवान होंगे उनका राज चलेगा। मानवता नष्ट हो जाएगी। रिश्ते खत्म हो जाएंगे। एक भाई दूसरे भाई का ही शत्रु हो जाएगा। समझिए शुरुआत हो चुकी है। 

कलियुग में लोग अध्यात्म से विमुख हो जाएंगे। अनैतिक साहित्य ही लोगों की पसंद हो जाएगा। बुरी बातें और बुरे शब्दों का ही व्यवहार किया जाएगा। और ऐसा समय आएगा जब स्त्री और पुरुष, दोनों ही अधर्मी हो जाएंगी। स्त्रियां पतिव्रत धर्म का पालन करना बंद कर देगी और पुरुष भी ऐसा ही करेंगे।

इंसान की उम्र बहुत कम रह जाएगी, और 16 वर्ष की आयु में ही लोगों के बाल पक जाएंगे जो कि आजकल देखा जाता है। यह बात सच भी प्रतीत होती है, क्योंकि प्राचीन काल में इंसानों की उम्र करीब 100 वर्ष रहती थी, लेकिन आज के समय में इंसानों की आयु बहुत कम 60-70 वर्ष हो गई है। भविष्य में भी इंसानों की औसत उम्र में कमी आने की संभावनाएं है, क्योंकि प्राकृतिक वातावरण लगातार बिगड़ रहा है और हमारी दिनचर्या और व्यवहार असंतुलित होते जा रहे है।

शास्त्र कहते है कि जब धर्म की हानि होती है तब ईश्वर अवतार लेकर अधर्म का नाश करते हैं। हिन्दू धर्म में इस संदेश के साथ अलग-अलग युगों में ईश्वर के कई अवतारों के प्रसंग पाए जाते हैं। इस कथानक को सही समझे तो क्या सतयुग वापस आएगा? एक कल्पना करते है चलिए, पर कैसे मुमकिन है? हम तो ईश्वर को भी नि:स्वार्थ भाव से याद नहीं करते वहाँ भी सौदा होता है, हे ईश्वर मेरा ये काम कर दो मैं दो नारियल चढ़ाऊँगा। कहाँ से सतयुग आएगा।

फिर भी चलो कोशिश करते है पर कोई एकल-दुकल इंसान की पहल से दुनिया नहीं बदलती, ना ही किसी चीज़ में परिवर्तन आता है। एक-एक व्यक्ति को बदलना होगा तब कहीं जाकर हम सतयुग की तरफ़ प्रयाण कर पाएंगे। 

सबसे पहले सोचिए हमारे पूर्वज क्या थे, कैसे जीते थे, उनकी सोच कैसी थी? जीवन कितना सादा था, खान-पान कितना सात्विक था। न आचरण में लालच, न विचारों में ईर्ष्या न कोई व्यसन न वाणी में गाली गलोच। हंमेशा क्रोध पर काबू, न खून खराबा न बेटियों पर बुरी नज़र, न मन में वासना का कीड़ा। न भाई-भाई में बैर, न परिवार का मुखिया गैरजिम्मेदार था। अध्यात्म दर्शन और उच्च विचार हम सभी इन सारी चीज़ों से वाकिफ़ है बस अमल में नहीं ला सकते।

अध्यात्म की राह पर चल कर कुछ अच्छी आदतों को अपनाकर खुद सच्चाई की राह चलें और अपने बच्चों को भी सच बोलना, प्रार्थना, प्यार और गलती का प्रायश्चित करना सिखाएं। बड़ों का आदर करना उनकी सेवा करना और उनकी जरूरतों को पूछना सिखाएं। छंटकर विभक्त हो रहे परिवार की बुनियाद मजबूत बनाएंगे तो परिवार एक बनेंगे और सुदृढ़ समाज का निर्माण होगा। क्या ये सारी आदतें गलत है? अगर हमारे विचार, वाणी और व्यवहार बदलने से कोई आस बंधती है तो क्यूँ न खुद को बदलकर देखें। चलो सतयुग का निर्माण करने की ओर कदम बढ़ाएं और धरती पर फैल रहे अनाचार का अंत करें। 

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर


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