शिकायतें ना करें!

 शिकायतें ना करें!

डॉ. माध्वी बोरसे!

क्यों करें किसी से शिकायत,

क्या स्वयं हे हम इसके लायक,

खुद को आईने मैं झांके तो,

हम स्वयं तो नहीं, अपनी जिंदगी के खलनायक?


किसी ने एक बार दर्द दिया,

उसे एहसास करके, उस दर्द को बार-बार लिया,

नफरत की आग में जल जल कर,

स्वयं के जख्म को ठीक क्यों नहीं किया?


शिकायतें शांति भंग कर देती है,

इंसान का सुख चैन छीन लेती है,

इसके साथ तो आत्मा,

तकलीफ में हरदम रहती है!


शिकवा, गिला बंद करो करना,

एक दिन तो सभी को है मरना,

चलो प्रेम से आगे बढ़ते हैं,

क्यों हर बात पर किसी से लड़ते रहना!


स्वयं को सुधारें,स्वयं को पहचाने,

स्वयं की अच्छाई और बुराइयों को जाने,

हमारे अलावा सब की गलतियों को नजरअंदाज करके,

स्वयं की गलतियों को भी माने!


किसी से कोई उम्मीद ना रखिए,

सिर्फ स्वयं की काबिलियत को परंखिए,

शांति और नम्रता से जीवन को बिताए,

जीवन में स्वयं को और सब को भी समझिए!


नकारात्मकता को दूर करें,

सकारात्मकता के साथ आगे बढ़े,

आज से गिला, शिकवा मिटाकर,

इंसानियत और जुनून के साथ हो जाते हैं खड़े!


डॉ. माध्वी बोरसे!

(स्वरचित व मौलिक रचना)

राजस्थान (रावतभाटा)

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