Five short stories by mahesh keshri

Five short stories by mahesh keshri

Five short stories by mahesh keshri
Five short stories by mahesh keshri

महेश कुमार केशरी जी के द्वारा लिखित पांच लघुकथाएं। 

(1)लघुकथा-निपटारा

वीडियोग्राफी और सर्वे का काम खत्म हो चुका था l कोर्ट परिसर खचाखच भीड़ से भरी हुई थी l सबकी साँसें रूकी हुई थीं l कि आखिर फैसला क्या आयेगा l फैसला देने के लिये जज साहब भी सोच ही रहे थें l तभी खचाखच भरी उस भीड़ में अचानक से बूढ़ा माईकल नमूदार हुआ l और जज साहब से मुखातिब होते हुए बोला - " जज साहब , हमारे अस्पताल वाले फैसले का क्या हुआ ? जो सालों पहले से यहाँ लंबित पड़ा हुआ है l मेरा वकील कह रहा था कि आजकल में मेरे गाँव के विवादित जमीन जिसपर अस्पताल बनना तय हुआ था l कुछ दबंगों ने जबरजस्ती कब्जा कर लिया है l आपको पता भी है मेरी बीबी इलाज के लिये एड़ियाँ रगड़- रगड़ कर गाँव में ही मर गई l उसी दिन मैनें कसम खाई थी कि हमारे गाँव में भी हमारे लिये अस्पताल होगा l किसी को भी गाँव से बाहर दस किलोमीटर दूर नहीं जाना होगा l गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी रास्ते में अब नहीं होगी l कोरोना में अस्पताल नहीं रहने के कारण हमारे गाँव के कई लोग मर गये l गाँव में अस्पताल होता तो शायद कितने लोगों की जान बच सकती थी l अब अपने गाँव में और मौतें मैं नहीं होने देना चाहता l "

बूढ़ा माईकल बोलते -बोलते थकने लगा था l कुछ देर सुस्ता कर फिर बोला - " जज साहेब l आज मेरा फैसला कर दीजिये l बहुत तारीखें पड़ चुकीं l " सत्तर साल का बूढ़ा माईकल जो पीठ से काफी झुका हुआ था ने जज साहब के इजलास में अपनी फरियाद सुनाई l

उसकी इस तरह की बातें सुनकर l वहांँ , मोजूद लोग माईकल को कौतूहल से देखने लगे l गोया उन्होंने भूत देख लिया हो l

तभी संतरी सेवाराम ने माईकल को डपटा - " तुमको पता नहीं है कि आज किस चीज का फैसला आने वाला है l आज इस बात का फैसला आयेगा l कि जगदतदल पुर में मंदिर बनेगा या मस्जिद l सारा देश इस फैसले को देखने के लिये बैठा हुआ है l देखते नहीं कि ये फास्ट- ट्रैक कोर्ट लगा हुआ है l चलो जाओ और जज साहब को अपना फैसला सुनाने दो l तुम्हें मालूम है अगर ये फैसला ना आया तो बलबा मच जायेगा l बलबा ! समझे कुछ l बहुत सेंसीटिव मुद्दा है l "

बूढ़ा माईकल अब भी कुछ नहीं बोला l और वहीं का वहीं खड़ा रहा l तब जज साहेब ने लताड़ा - " कैसे अहमक हो भाई तुम l एक बार में बात समझ नहीं आती क्या ? तुम्हारे अस्पताल वाले जमीन के केस के लिये कोई दूसरा दिन मुकर्रर किया है l तब तक घर जाओ और आराम करो l " जज साहब टालने की गरज से बोले l

इस बार माईकल कुछ ऊँची आवाज में बोला - " जज साहेब मंँदिर - मस्जिद की जरूरत किसको है l हमें तो अस्पताल और स्कूल चाहिये l अफसोस है कि इस पर फैसले नहीं होते l और हम आँखें बँद किये रहते हैं lईश्वर तो दर असल यहीं बिराजते हैं l डाॅक्टर के रूप में l शिक्षक के रूप में l क्या अस्पताल और स्कूल सेंसिटिव मुद्दे नहीं हैं l लोगों को अस्पतालों और स्कूलों के लिये बलवा करते कभी नहीं देखा l आदमी को स्कूलों और अस्पतालों के लिये लड़ना चाहिये l ना कि मंँदिर और मस्जिद के लिये l क्या मैं ठीक कह रहा हूँ जज साहेब l "

बूढ़ा माईकल जज साहब से सवाल पूछ रहा था l और जज साहेब उजबकों की तरह माईकल के चेहरे को घूरे जा रहें थें l उनको समझ में नहीं आ रहा था l किस फैसले का निपटारा वो पहले करें l

(2)लघुकथा - छोटे लोग 

सुदर्शन बाबू बहुत ही जातीय शुद्धता का दँभ भरने वाले और धार्मिक किस्म के आदमी थें l उनको उनका ही धर्म सर्वोत्कृष्ट लगता था l लेकिन आज पासा पलट गया था l नदीम उनका पड़ौसी था l और उसको वो विधर्मी ही मानते थें l और वो ठीक ही तो मानते थें l शुरू से ही उनको ये सीख मिली थी l कि ये लोग आक्राँता हैं l हिंदुस्तान को लूटने वाले l हिंदूओं से नफरत करने वाले l लेकिन आज उनका ये भ्रम जाता रहा था l कि नदीम एक विधर्मी है l उनको याद है वो रात l कयामत की रात थी वो l शहर में इतनी बारिश और तूफान था कि हाईवे और सारे रास्ते बँद थें l फोन कहीं लग नहीं रहा था l शहर में बिजली का नामों - निशांँ नहीं था l और , उनकी पत्नी की तबीयत अचानक से बिगड़ने लगी थी l तब नदीम ही था l जो मदद करने को आगे आया था l सात -आठ बजे तक मौसम बिल्कुल ही साफ था l और साढ़े आठ बजे के आसपास ही राजेश्वरी देवी की तबीयत अचानक से बिगड़ने लगी थी l तब सुदर्शन बाबू ने जाति सेना के अजेय सिपाहियों को मदद के लिये बुलाया था l लेकिन एक तो खराब मौसम और दूसरे रात का वक्त होने के कारण लोगों ने हाथ खड़े कर लिये थें l रिश्तेदारों तक ने आने से मना कर दिया था l तब नदीम ने ही पहल करते हुए कहा था - " भैया , आपके घर से भौजी की कराहने की आवाजें लगातार आ रहीं थीं l सुनकर रहा नहीं गया तो देखने चला आया l भौजी की तबीयत ठीक तो है ना l ना हो तो भौजी को लेकर अस्पताल चला जाये l " 
" इस तूफानी और बरसाती रात में ! " सुदर्शन बाबू को जैसे कोई फरिश्ता आवाज लगा रहा था l सुदर्शन बाबू अपलक नदीम को लैंप की रौशनी में निहारते रह गये थें l उनका कौतूक बढ़ता ही जा रहा था l 
"अरे , हाँ भाई l हमारा शरीर खेतों में खटा हुआ है l पक्का किसान रहा हूँ l घर में दसियों बीघे खेत थें l भाईयों ने जब बँटवारे की बात की तो सबकुछ उनको ही सौंपकर इधर शहर में आ गया l और आॅटो चलाने लगा l गाँव में गिरधारी चौधरी का मैं चेला था l कुछ दँगल -वँगल मारने का ऐसा शौक चर्राया की फिर , गिरधारी चौधरी का चेला होकर रह गया l गिरधारी चौधरी हमारे पड़ौसी थें l लँगोट और कौल के बड़े पक्के आदमी थें l उनका ही शार्गिद हूँ l गिरधारी चौधरी जब तक जिंदा रहे l एक ही बात कहते रहे l अपने से हमेशा कमजोर लोगों की मदद करना l कभी किसी सताये हुए को मत सताना l बजरंग बली हमेशा तुम्हारी रक्षा करेंगें l अब बताईये की आप हमारे पड़ौसी हैं कि नहीं l माना कि आज कयामत की रात है l बाबजूद इसके भौजी का कराहना हमें बहुत दु:ख पहुँचा रहा है l चलिये देरी मत कीजिये l कहीं कोई अनिष्ट ना हो जाये l " 
और , उस मूसलाधार बारिश और तूफानी रात में नदीम राजेश्वरी देवी को अस्पताल पहुँचा आया था l और सुदर्शन बाबू किसी अनिष्ट की आशंका से घिरे काॅरीडार में चहलकदमी कर रहे थें l 
तभी रोहित दौड़ता हुआ , सुदर्शन बाबू के पास आया और बोला -" अस्पताल में माँ के बल्ड ग्रुप का खून ही नहीं है l डाॅक्टर ने कहा है कि शहर के किसी अस्पताल में माँ के ग्रुप का खून नहीं मिल रहा है l अगर खून ना मिला तो माँ बचेगी नहीं l लेकिन डाॅक्टर ने एक बात और कही है l नदीम चाचा का ब्लड ग्रुप माँ के बल्ड ग्रुप से मैच करता है l राजीव भैया पूछ रहें है कि क्या माँ को नदीम चाचा का खून दिया जा सकता है या नहीं ? नदीम चाचा भी बहुत डरे हुए हैं l कह रहें थें कि कहाँ आप पंड़ित और कहाँ हम मलेच्छ l पंड़ित जी मानेंगें नहीं मैं जानता हूँ l " 
" कहाँ हैं नदीम ? " सुदर्शन बाबू काॅरीडोर से अस्पताल के भीतर भागे l 
देखा डाॅक्टर ने नदीम का खून स्लाइन से लेना शुरू कर दिया था l धीरे - धीरे खून की बूँदें राजेश्वरी देवी में जिंदगी भर रहीं थीं l दूसरी बेड़ पर नदीम लेटे हुए थें l और अस्पताल की छत को घूरे जा रहे थें l सुदर्शन बाबू को देखा तो जैसे सफाई देते हुए बोले - " सुदर्शन बाबू , आज मैं आज बहुत शर्मिंदा हूँ l कि हमारे इस शहर में किसी ऊँची जाति का ब्लड ग्रुप का खून मुहैया नहीं था l नहीं तो ये मलेच्छ भौजी को अशुद्ध ना करता l
 सुदर्शन बाबू आप कहाँ उच्च - कुलीन ब्राह्मण l और मैं कहाँ मलेच्छ l आप मुझे माफ कर देना भाई l इस गलती के लिये l " और नदीम मिंयाँ ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिये थें l 
  सुदर्शन बाबू का बहुत देर से जब्त किया हुआ बाँध जैसे टूट कर भरभराकर बहने लगा -" बोले , आज एक मलेच्छ ने मुझे खरीद लिया l सौ जन्म भी मैं अगर ले लूँ तब भी तुम्हारा उपकार कभी नहीं चुका सकता l तुम आदमी नहीं आदमी के रूप में फरिश्ते हो फरिश्ते l अगर मेरी देह की खाल तुम्हारे जूते बनाने के काम भी आ जाये तो मैं अपने आप को धन्य समझूँगा l " 
  " भैया काहे शर्मिंदा करते हो l " नदीम मिंयाँ झेंपते हुए बोले l 
  तूफानी रात खत्म हो चुकी थी l सुबह का सूरज आकाश में लालिमा बिखरे रहा था l धीरे - धीरे राजेश्वरी देवी सूरज की तरफ देखकर मुस्कुरा रही थीं l और सुदर्शन बाबू और नदीम मिंयाँ किसी बात पर हँस - हँसकर आपस में बातें कर रहे थें l 

(3)लघुकथा-साँसें

रामप्रसाद को खुद भी आश्चर्य हो रहा था l कि इतने जल्दी उसके हाथ कैसे थकने लगे हैं ? अभी तो साठ का ही हुआ है l लेकिन दो साल पहले तक वो गाड़ी भरने में जवानों के कान भी काट देता था l सीताराम पुर में किसी को भी गाड़ी खाली करवानी हो या भरवानी हो l वो रामप्रसाद को ही पहले बुलाता था l आखिर कोलवरी में मलकट्टा के पोस्ट से रिटायर होकर जो आया था , रामप्रसाद l यही हाथ हैं जो दो ढाई दिनों में कोयले का बड़ा से बड़ा ट्रक लोड़ कर देते थें l वही हाथ इतनी जल्दी जबाब देने लगे हैं l अभी तो बहुत काम करना है l बिटीया बड़ी हो रही है l उसके लग्न के लिए भी पैसे जोड़ने हैं l मुन्ना को स्कूल की फीस भी देनी है l और घर की सारी जिम्मेदारियाँ भी उसकी ही हैं l आखिर क्या खायेंगे वो ? अगर इतनी जल्दी वो थकने लग जायेगा l " 
उसने तम्बाकू निकाला और हाथ पर मलने लगा l पिछले , कोरोना में वो भी पाज़िटिव हो गया था l मरते -मरते बचा है l इधर साल भर से बीमार रहा है l हो सकता है , बीमारी और कोरोना ने मिलकर उसकी शक्ति छीन ली हो l वो बोरों पर पिल पड़ा l और आनन - फानन में बोरे उठाकर गाड़ी में भरने लगा l लेकिन बात बन नहीं रही थी l तभी मालिक सुरेमन बाबू की आवाज उसके कानों में गूँजी - " , अबे , रामप्रसाद हाथ जरा जल्दी- जल्दी चलाओ l इतना धीरे - धीरे काम करेगा तो शाम तक माल पार्टी के पास कैसे पहुँचेगा ? " सुरेमन आँखें तरेरते हुए बोला l  
" हाँ , मालिक गाड़ी लोड़ कर रहा हूँ l अभी आधे घंटे में हो जायेगा l"
वो , दुबारा उठा , और बोरों को कँधों पर लादकर गाड़ी में भरने लगा l लेकिन इतने में ही उसका दम फूलने लगा l एक तो चिलचिलाती हुई धूप और गर्मी l आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा l पाँव भी लड़खड़ाने लगे l उसका दम उखडने लगा l और , अचानक से कटे पेंड़ की तरह वो गिरा l पल भर में मजदूरों ने उसे घेर लिया l नब्ज़ टटोली गई l नब्ज़ थम गई थी l " 
जिम्मेदारियाँ पीछे खड़ी रामप्रसाद का बाट जोह रहीं थीं 
l जैसे कह रहीं हों - " उठो , रामप्रसाद , अभी , तो बहुत काम करना बाकी है l "

(4)लघुकथा -भूख  

गायत्री ने जुगल को एक बार घर से बाहर निकलते वक्त फिर से याद दिलाया - " आज तुम्हारा तीसरा दिन है l आज भी खाली हाथ मत लौटना l नहीं , तो आज बच्चे मानने वाले नहीं हैं l कल पड़ोसन के यहाँ से पार्टी में बची पूड़ी लाकर खिलाया था l सम्मी की माँ का नरसों का उधार लिया दो सौ रूपया भी चुकाना है l उधर पंसारी सौदा देने से मना कर रहा है l सबके अपने तकाजे हैं l मैं आखिर कहाँ तक देखूँ ? " 
आखिर जुगल से भी नहीं रहा गया l और वो , गायत्री पर बिफर पड़ा - " आखिर , तीन दिनों से बोहनी नहीं हो रही है l तो मैं क्या करूँ ? मैं शौक से थोड़ी ही खाली हाथ लौटता हूँ l कुकुरमुत्ते की तरह बेगारी बेरोजगार लड़के हो गये हैं l एक तो आर्डर नहीं है l भेड़ों से ज्यादा गड़ेंरी हो गये हैं l ना ही मैं घर में बैठा रहता हूँ l सुबह नौ बजे से रात दस बजे तक आखरी आर्डर के इंतजार में मैं सड़कों की खाक छानता रहता हूँ l अब जब बाजार ही ज्यादा खराब रहता है l तो कोई क्या कर सकता है ? " 
पर्वतपुर पहाड़ी एरिया है l यहाँ बारिश कुछ ज्यादा ही होती है l आॅनलाईन आर्डर बरसात में कम ही निकलते हैं l फिर , गाँव- ज्वार वाला एरिया होने के कारण पिज्जा- बर्गर और पेटिस खाने वाले लोग हैं ही कितने ? वो तो शहर में पढ़ने वाले आजकल के नौजवान लड़के- लड़कियों के शौक- मौज की चीज है l " 
" पापा...बहुत भूख लगी है l कुछ खाने के लिए लेकर आओ ना l " 
 रंगोली ने जब बहुत लाड से कहा तो जुगल की तंद्रा टूटी - " हड़बड़ाकर बोला ... अभी देखता हूँ l जाकर बाहर से कुछ लाता हूँ l " 
 जुगल ने जेब टटोली कल रात जब वो घर आने के लिए लौट रहा था l तब उसकी जेब में एक पाँच रूपये का सिक्का था l और उसी सिक्के से उसने एक पैकेट बिस्किट खरीद लिया था l रास्ते में उसमें से एक बिस्किट निकालकर खाया था l बाकी के पाँच - छ: बिस्किट उस पन्नी में पड़े थें l जुगल ने मुस्कुराते हुए वो बिस्किट का पैकेट रंगोली की ओर बढ़ा दिया l वो कूदती -फांदती बिस्किट का पैकेट लेकर बाहर भाग गई l " 
 जुगल ने अपनी मोटर-साईकिल निकाली बैग को पोछा l और तभी उसकी नजर बैग पर लिखी इबारत पर पड़ी l जिसके मजमून कुछ इस तरह के थें - " आज , आप क्या खाएँगें ? " l  
 बड़ी अजीब बात है l वो खुद लोगों से पूछता रहता है कि " आज आप क्या खायेंगें ? " l लेकिन , आज तक कभी उसने अपनी फैमिली से नहीं पूछा कि आज आप क्या खायेंगें ? 
 उसने गौर से देखा बैग के ऊपर लिखी इबारत पर किसी का ध्यान तो नहीं गया l बच्चे बाहर खेल रहें थें l गायत्री कपड़े धो रही थी l 
 लगा उसने कोई चोरी की हो l और वो , पकड़ा जायेगा l वो जल्दी बाजी में मोटर-साईकिल लेकर सड़क पर आ गया l धूप में बैग पर लिखी इबारत बैताल की तरह जुगल के कंधे पर सवार होकर पूछ रही थी - " आज आप क्या खायेंगे..? 

(5)लघुकथा -युद्ध

 बारह साल के अनुभव ने टी. वी. पर न्यूज देखते हुए , अपने पिता विकास से पूछा -" पापा इस दुनिया का सबसे बुद्धिमान प्राणी कौन है ? " 
 विकास ने नाश्ते का कौर मुँह में रखते हुए कहा -" आदमी और कौन .. ? " 
  " क्या आदमी , सबकुछ कर सकता है ..? " अनुभव टी. वी. का रिमोट हाथ में घुमाते हुए बोला l " 
  " हाँ , वो सबकुछ कर सकता है l आदमी ने साइंस और टेक्नोलॉजी की मदद से चाँद और मँगल ग्रह पर बस्तियाँ बसा लीं हैं l यहाँ तक की आदमी कहीं से भी बैठे-बैठे पलक झपकते ही अपने दुश्मनों का पल भर में सफाया कर सकता है l " 
  अनुभव फिर उसी लहजे में बोला- " पापा , आदमी जब सब कुछ कर सकता है l तो उसने चिड़ियों से कुछ नहीं सीखा ? "  
  " मतलब..? " विकास ने अनुभव को सवालिया नजरों से घूरा l 
  " मतलब , चिड़ियाँ रेशों और तिनकों की मदद से धीरे - धीरे अपना घोंसला बना लेती है l और , उसमें अपने लोगों के साथ आराम से रहती है l झुँड़ में दाना चुगने जाती है l झुँड़ में ही वापस आती है l मैनें उन्हें कभी आपस में लड़ते - झगड़ते नहीं देखा l क्या , आदमी ने चिड़ियों से कभी कुछ नहीं सीखा ? " 
  कमरे में कुछ देर चुप्पी के कतरे तैरते रहे l 
  फिर , विकास ने हाथ में लिया नाश्ते का कौर वापस प्लेट में रख दिया और , अनुभव के बगल में जाकर बैठ गया l फिर वो अनुभव से बोला - " बेटा , तुम कहना क्या चाहते हो ? " 
  तब अनुभव , विकास के और करीब खिसक आया l और विकास से बोला - " पापा , जब मनुष्य इतना बुद्धिमान है l तो वो , युद्ध क्यों करता है ? युद्ध के कारण ही लाखों लोग , युद्ध में मारे जाते हैं l कितने बच्चे युद्ध के कारण अनाथ हो जाते हैं l कितनी स्त्रियाँ विधवा हो जातीं हैं l लोग विस्थापित हो जाते हैं l लोगों को शरणार्थियों का जीवण जीना पड़ता है l आखिर , युद्ध से किसका भला होता है ? " 
  विकास ने बेटे के सिर पर बड़े प्यार हाथ से फेरते हुए अफसोस के साथ कहा - " बेटा , युद्ध से किसी का भला नहीं होता l लेकिन आदमी कभी - कभी अति- महत्वकांक्षी होने के कारण और कभी- कभी अपने लालच में , अपनी कुँठा को छुपाने के लिए भी युद्ध लड़ता है l वो , युद्ध का इतिहास पढ़ता जरूर है l लेकिन , इतिहास से कुछ सीखता नहीं है l सच तो ये कि आदमी ने चिड़ियों से भी कम तरक्की की है l 
   

सर्वाधिकार सुरक्षित
 महेश कुमार केशरी
मेघदूत मार्केट फुसरो
बोकारो झारखंड
मो-9031991875
Email- keshrimahesh322@gmail.com

About Writer

परिचय - 
नाम - महेश कुमार केशरी
जन्म -6 -11 -1982 ( बलिया, उ. प्र.) 
शिक्षा - 1-विकास में श्रमिक में प्रमाण पत्र (सी. एल. डी. , इग्नू से) 
2- इतिहास में स्नातक ( इग्नू से) 
3- दर्शन शास्त्र में स्नातक ( विनोबा भावे वि. वि. से) 

अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन - सेतु आनलाईन पत्रिका (पिटसबर्ग अमेरिका से प्रकाशित) .
राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन- वागर्थ , पाखी , कथाक्रम, विभोम - स्वर , गाँव के लोग , हिमप्रस्थ , किस्सा , पुरवाई, अभिदेशक, , हस्ताक्षर , मुक्तांचल , शब्दिता , संकल्य , मुद्राराक्षस उवाच ,
अंतिम जन , प्राची , हरिगंधा, नेपथ्य, एक नई सुबह, एक और अंतरीप , दुनिया इन दिनों , रचना उत्सव, स्पर्श , सोच - विचार, व्यंग्य - यात्रा, समय-सुरभि- अनंत, ककसार, अभिनव प्रयास, सुखनवर , समकालीन स्पंदन, साहित्य समीर दस्तक, , विश्वगाथा, स्पंदन, अनिश, साहित्य सुषमा, प्रणाम- पर्यटन , हॉटलाइन, चाणक्य वार्ता, दलित दस्तक , सुगंध, 
नवनिकष, कविकुंभ, वीणा, यथावत , हिंदुस्तानी जबान, आलोकपर्व , साहित्य सरस्वती, युद्धरत आम आदमी , सरस्वती सुमन, संगिनी,समकालीन त्रिवेणी, मधुराक्षर, प्रेरणा अंशु , तेजस, दि - अंडरलाईन,शुभ तारिक , मुस्कान एक एहसास, सुबह की धूप, आत्मदृष्टि , हाशिये की आवाज, परिवर्तन( आनलाईन, पत्रिका) गोवा, विश्वविधालय से प्रकाशित , युवा सृजन, अक्षर वार्ता (आनलाईन पत्रिका), सहचर ई- पत्रिका, युवा -दृष्टि ई- पत्रिका, संपर्क भाषा भारती , , दृष्टिपात, नव साहित्य त्रिवेणी (पाक्षिक पत्रिका) , नवकिरण ( आनलाईन पत्रिका ), अरण्य वाणी, राँची एक्स्प्रेस, अमर उजाला, प्रभात खबर, पंजाब केसरी , नेशनल एक्स्प्रेस, युग जागरण, शार्प- रिपोर्टर, प्रखर गूंज साहित्यनामा, कमेरी दुनिया, आश्वसत के अलावे अन्य पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित . 
 चयन - (1 )प्रतिलिपि कथा - प्रतियोगिता 2020 में टाॅप 10 में कहानी " गिरफ्त " का चयन  
(2 ) पच्छिम दिशा का लंबा इंतजार ( कविता संकलन )
जब जँगल नहीं बचेंगे ( कविता संकलन ), मुआवजा ( कहानी संकलन ) 
(3)संपादन - प्रभुदयाल बंजारे के कविता संकलन " उनका जुर्म " का संपादन..
(4)-( www.boltizindgi.com) वेबसाइट पर कविताओं का प्रकाशन
(5) शब्द संयोजन पत्रिका में कविता " पिता के हाथ की रेखाएँ "
 का हिंदी से नेपाली भाषा में अनुवाद सुमी लोहानी जी द्वारा और " शब्द संयोजन " पत्रिका में प्रकाशन आसार-2021 अंक में.
(6) चयन - साझा काव्य संकलन " इक्कीस अलबेले कवियों की कविताएँ " में इक्कीस कविताएँ चयनित
(7) श्री सुधीर शर्मा जी द्वारा संपादित " हम बीस " लघुकथाओं के साझा लघुकथा संकलन में तीन लघुकथाएँ प्रकाशित 
(8) सृजनलोक प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित और संतोष श्रेयंस द्वारा संपादित साझा कविता संकलन " मेरे पिता" में कविता प्रकाशित 
(9) डेली मिलाप समाचार पत्र ( हैदराबाद से प्रकाशित) दीपावली प्रतियोगिता -2021 में " आओ मिलकर दीप जलायें " कविता पुरस्कृत
(10) शहर परिक्रमा - पत्रिका फरवरी 2022- लघुकथा प्रतियोगिता में लघुकथा - " रावण" को प्रथम पुरस्कार
(11) कथारंग - वार्षिकी -2022-23 में कहानी " अंतिम बार " 
प्रकाशित
(12)व्यंग्य वार्षिकी -2022-2023- में व्यंग्य प्रकाशित 
(13) कुछ लघुकथाओं का पंजाबी , उड़िया भाषा में अनुवाद और प्रकाशन 
(14) पुरस्कार - सम्मान - नव साहित्य त्रिवेणी के द्वारा - अंर्तराष्ट्रीय हिंदी दिवस सम्मान -2021
संप्रति - स्वतंत्र लेखन एवं व्यवसाय
संपर्क- श्री बालाजी स्पोर्ट्स सेंटर, मेघदूत मार्केट फुसरो, बोकारो झारखंड -829144
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