कितनी ओर फाइलें
कितनी ओर फाइलें
Jayshree birmi |
कश्मीर फाइल्स देखी तो दिल को बहुत ठेस पहुंची थी। जो अत्याचार अपने ही वतन में हुआ वह 1947 से कम भयावह नहीं था। वह जो वक्त था कि बयान करने से नहीं बनता।कितनी ही दर्दनाक चीखे जो उस वक्त सुनी थी वह आज भी हवाओं में गूंज रही हैं अगर कोई सुनने वाला हो तो! अगर सुनाई दे तो समझो वह अपने लिये एक वार्निंग हैं।पार्टीशन होने की मुख्य दो वजहें गिनी जायेगी,धर्म और राजनीति। आम नागरिकों का उसने कोई मतलब नहीं दिखाई देता।सिर्फ धर्म के नाम पर राजनैतिक फैसलों को अंजाम दिया गया था।लेकिन न ही धर्म के ठेकेदारों का कोई जान माल का नुकसान हुआ और न ही राजनैतिग्यों का,जो कुछ सहन किया वह आम नागरिकों ने ही किया हैं।महिलाओं ने किया,बच्चों ने किया और पुरुषों ने भी किया।कुछ राजनैतिज्ञों की महत्वकांक्षा की बलि चढ़ गई भोली भाली प्रजा।क्या मिला पाकिस्तान को? सब से बड़ी चीज जो पाकिस्तान ने खोई वह हैं एक शानदार इतिहास,क्या वे मानेंगे भारतवर्ष के ज्वलंत इतिहास को उनका इतिहास? इतिहास कोई वृक्ष की जड़ों की भांति होता हैं कोई भी संस्कृति का इतिहास ही उनकी जड़ें होती हैं,उनका गुरुर होता हैं। जड़ों के बिना कोई पेड़ खड़ा कैसे होगा,पनपेगा कैसे? न ही वे महाराजा रंजीतसिंघ को आदर सम्मान दे पाएंगे और न ही किसी दूसरे राजाओं को।तो क्या करेंगे वे लोग? वही आतताइयों को अपने इतिहास में शामिल कर रहे हैं जैसे महम्मद घोरी और पता नहीं कौन कौन! जब हम महाराणा प्रताप का नाम लेते हैं तो उनकी अणनम छवि अपनी आंखों के सामने आ जाती हैं और अपने इतिहास पर गर्व होता हैं।अगर वे भी अकबर के सामने जूक जातें,शरणागति स्वीकार कर आराम से जी सकते थे।लेकिन घास के बीज की रोटी खाने वाले पर हम जो गर्व ले सकते हैं वह शरणागत हुए प्रताप की ले पा सकते क्या?
अपने अपने धर्म का पालन करना सबका धर्म हैं लेकिन अपना धर्म दूसरों पर थोपना बड़ा ही अधर्मी कृत्य हैं।जो सनातन धर्म के किसी राजा या धर्मगुरुओं ने नहीं किया हैं।धर्मांतरण एक स्वैच्छिक प्रक्रिया हैं उसमे कोई प्रलोभन या धमकी या चालाकी आने से उसे अधार्मिक प्रक्रिया ही माना जायेगा।वैसे तो इतिहास हीन पाकिस्तान के पास अपने लिए गौरव लेना,धर्म के अलावा और कोई ठौर नहीं होने से अपनी सरकारों को सत्ता में रखने के लिए कश्मीर में आतंक फैला कर ,भारत को अस्थिर बना कर लोकप्रियता हासिल करना ही उनका ध्येय हैं।जैसे ही दूसरे नवाज ने सत्ता संभाली तो फिर से कश्मीर में आतंक फैलाना शुरू कर दिया और अपने ही देश के बंधुओं को बाहरी कहना शुरू कर दिया।अपने देश में हो रही आर्थिक तंगी और महंगाई को लोगों के दिमाग से निकलने के लिए कश्मीर में अशांति फैला कर बेहलाते हैं ,स्लीपिंग पिल्स जैसा कश्मीर प्रश्नों का उपयोग करने वालें अगर वही पैसा जो कश्मीर में व्यय हो रहा है उसे अपने देश के आर्थिक हालातों को सही करने में लगाएं तो उनकी उन्नति होगी।लेकिन जो खुराफातों से उन्होंने देश पाया हैं उसी खुराफाc के साथ उनका काम ऐसे ही चलता रहेगा।
लेकिन इस पार्टीशन से क्या पाया क्या खोया का गणित थोड़ा समझे और समझाएं तो शायद कुछ रास्ता निकलें।जानते हैं सभी कि उनकी मुश्किलों में कई बार पड़ोसी होने का धर्म हम ने निभाया हैं लेकिन उन बातों के कोई मायने हैं ही नहीं और होंगे भी नहीं।
वैसी ही नासमजी कहें तो कश्मीर में भी हुई हैं।जो हो गया वह तो कुछ नहीं हुआ था लेकिन जब उसे फिल्म में बताया गया तो हो हल्ला इतना मचाया हंगामा कि ”देश में अशांति फैलाने की कोशिश हो रही हैं”।लेकिन नतीजन उनको क्या मिला? एक प्रबुद्ध जाति के लोग जो शिक्षक थे,डॉक्टर थे और दूसरे बुद्धिमान लोग थे उन लोगो ने प्रयाण किया या करवाया गया लेकिन नुकसान तो प्रदेश का हुआ न! बुद्धिधन का निकाला होने से बच्चों को सही शिक्षण प्राप्त नहीं हुआ,वे अनपढ़ रह गएं और दूसरे कई व्योपार धंधों में भी हानि हुई होगी वह अलग से।अपने प्रदेश की उन्नति के बजाएं अवनीति को चाहने वालें अपना खुद का बुरा करने वाले काम ही होंगे जो यहां देखने को मिलता हैं।जन्नत मानी जानी वाली घाटियों को बंजर बनाकर क्या वहां के लोग प्रगति कैसे कर सकेंगे! बोलते हैं अपना देश अपना होता हैं लेकिन दूसरे लोगो के बहकावे में आके अपने देश या अपने ही घर को उजाड़ने वालें दूसरों का नुकसान करें या न करें अपना नुकसान जरूर कर लेते हैं।कुछ समय की शांति के बाद आज पाकिस्तान की नई सरकार को अपने रुआब को स्थापित करने के लिए फिर से कश्मीर का उपयोग हो रहा हैं।फिर वहीं हत्याओं का सिलसिला शुरू हो गया हैं,हैवानियत का खुल्ला नाच नाचने वाले सहन कर रहें हैं और नचवाने वाले कुछ रुपए फेंक अपना उल्लू सीधा कर मजे ले रहे हैं।
अब तो समय ही बताएगा कि कब हमारे लोग समझेंगे कि किसी के हाथ का हत्था बनने से ज्यादा अपने देश के साथ रहना ज्यादा फायदेमंद होगा अपने तो अपने होते हैं।
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद