माँ - तूम धन्य हो !

 माँ - तूम धन्य हो !

मईनुदीन कोहरी"नाचीज बीकानेरी"
मईनुदीन कोहरी"नाचीज बीकानेरी"

माँ ...

तेरा प्यार - दुलार

माँ तेरी ममता

माँ ,तूने औलाद की खातिर

क्या - क्या नहीं सहा ।

माँ , तुमने मन को मार कर

 समय के साथ -साथ

दृढ़ता से जूझ कर

ज़हर के घूंट पी- पी कर

औलाद को तुमने पाला ।

तुमने सहे हैं ताने

तुमने खाई है फटकारें

सास , ननद , देवरानी - जेठानी की

प्रताड़नाओं को फ़क़त- औलाद की खातिर 

उनकी इच्छाओं - अरमानों को पूरा करने का सपना संजोया था ।

माँ , धन्य है तूँ

आँखों की नीन्द, दिल का चैन -सुकून न्योछावर किया था

औलाद पर ।

क्या औलाद रूपी उस वृक्ष की छाया में

सुख की साँस लेने के इरादे से तो

नहीं पाला था ।

माँ

आज उसी औलाद के मुख से , 

माँ - शब्द सुनने को तरसती हो !

माँ , बड़े जतनों से

मुहँ का नवाला दे कर

सपनों के संसार को

अपनी आँखों के सामने टूटते देखने के लिए

औलाद को पाला था ।

माँ कहाँ गई , तेरी ममता - करुणा दया ,अपनापन की तपस्या -त्याग का फल

क्या तुम यूँ ही टुगर - टुगर देखती -देखती

आँखों में आँसूं छलकते रहने व् ये दिन देखने औलाद को पाला था ।

गरजते झंझावतों , सर्दी - गर्मी - धुप की तपन में 

धतनार वृक्ष की तरह जिस औलाद को कलेजे से लगाकर रखा था , 

आज उसी औलाद के मुख से....

माँ -माँ ...

सुनने को व्याकुल क्यों हो ?

  माँ तुम इतनी उदास ,विचलित -लाचार सी

घट - घुट जीने को मजबूर

फुटबॉल सी बन

कभी उस औलाद केकभी ...... 

तुम भार बन चुकी हो

क्या मौत से पहले ?

मौत को गले लगाने के लिए

औलाद को पाला था

माँ , तुम धन्य हो !

माँ , तुम 

धन्य हो , माँ

धन्य हो ! धन्य हो !! धन्य हो !!!


मईनुदीन कोहरी "नाचीज़ बीकानेरी"

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