माँ - तूम धन्य हो !
June 24, 2022 ・0 comments ・Topic: mainuddin_Kohri poem
माँ - तूम धन्य हो !
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मईनुदीन कोहरी"नाचीज बीकानेरी" |
माँ ...
तेरा प्यार - दुलार
माँ तेरी ममता
माँ ,तूने औलाद की खातिर
क्या - क्या नहीं सहा ।
माँ , तुमने मन को मार कर
समय के साथ -साथ
दृढ़ता से जूझ कर
ज़हर के घूंट पी- पी कर
औलाद को तुमने पाला ।
तुमने सहे हैं ताने
तुमने खाई है फटकारें
सास , ननद , देवरानी - जेठानी की
प्रताड़नाओं को फ़क़त- औलाद की खातिर
उनकी इच्छाओं - अरमानों को पूरा करने का सपना संजोया था ।
माँ , धन्य है तूँ
आँखों की नीन्द, दिल का चैन -सुकून न्योछावर किया था
औलाद पर ।
क्या औलाद रूपी उस वृक्ष की छाया में
सुख की साँस लेने के इरादे से तो
नहीं पाला था ।
माँ
आज उसी औलाद के मुख से ,
माँ - शब्द सुनने को तरसती हो !
माँ , बड़े जतनों से
मुहँ का नवाला दे कर
सपनों के संसार को
अपनी आँखों के सामने टूटते देखने के लिए
औलाद को पाला था ।
माँ कहाँ गई , तेरी ममता - करुणा दया ,अपनापन की तपस्या -त्याग का फल
क्या तुम यूँ ही टुगर - टुगर देखती -देखती
आँखों में आँसूं छलकते रहने व् ये दिन देखने औलाद को पाला था ।
गरजते झंझावतों , सर्दी - गर्मी - धुप की तपन में
धतनार वृक्ष की तरह जिस औलाद को कलेजे से लगाकर रखा था ,
आज उसी औलाद के मुख से....
माँ -माँ ...
सुनने को व्याकुल क्यों हो ?
माँ तुम इतनी उदास ,विचलित -लाचार सी
घट - घुट जीने को मजबूर
फुटबॉल सी बन
कभी उस औलाद केकभी ......
तुम भार बन चुकी हो
क्या मौत से पहले ?
मौत को गले लगाने के लिए
औलाद को पाला था
माँ , तुम धन्य हो !
माँ , तुम
धन्य हो , माँ
धन्य हो ! धन्य हो !! धन्य हो !!!
मईनुदीन कोहरी "नाचीज़ बीकानेरी"
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