गले लगाना चाहती/ gale lagana chahti
गले लगाना चाहती
गले लगाना चाहती हूँ तुझे अबना चाहिए अब और कुछ,
बस तुझमें समा जाना चाहती हूँ
एक कदम बढ़ा लिया हमने आज,
बस अगला कदम तेरा है
जिसका इंतजार हमे बेसब्री से है,
हर नाकाब उतार फेकना चाहती हूँ
ऐ मौत तुझे गले लगना चाहती हूँ,
थक गए हैं हम इन फरेबी दूनिया से
जहाँ ना कोई अपना है अब,
करो कुछ नया करामात तुम
कि हो जाए तमन्ना हमारी पूर्ण,
गले लगाना चाहती हूँ तुझे अब
ना चाहिए अब और कुछ ।
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स्वरचित रचनाममता कुशवाहा
मुजफ्फरपुर, बिहार