शेरों के बहाने हंगामा, विपक्ष की दहशत का प्रतीक

 शेरों के बहाने हंगामा, विपक्ष की दहशत का प्रतीक/sheron ke bahane hangama, vipaksh ki dahshat ka prateek  

प्रियंका 'सौरभ'
प्रियंका 'सौरभ'

 (क्या भारत के प्रतीक चिन्ह को एक राजनीतिक मुद्दा बनाना सही है? अगर मेरी व्यक्तिगत राय पूछें तो शेरों के खुले मुहं को दिखाना एक बहुत अच्छी बात है. ये शेर हमारे राष्ट्रीय प्रतीक हैं. शांति हमारी आत्मा में बसी है लेकिन बदलते दौर में अग्रेशन दिखाना भी बहुत जरुरी है. क्योंकि आज के पॉलिटिकल और शक्तिशाली होते युग में हम केवल शांति के दूत बनकर नहीं रह सकते. हम चारों तरफ दुश्मनों से घिरे हुए हैं इसलिए राष्ट्र के अग्रेशन को दिखाना बहुत जरूरी है. यह भारत की एग्रेसिव विदेश नीति का प्रतीक भी हो सकते हो सकते हैं ताकि दुश्मन इस देश की तरफ नजर करने से पहले हजार बार सोचे.)

-प्रियंका 'सौरभ'


अशोक स्तंभ संवैधानिक रूप से भारत सरकार ने 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर अपनाया था. इसे शासन, संस्कृति और शांति का सबसे बड़ा प्रतीक माना गया है. लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इसको अपनाने के पीछे सैकड़ों वर्षो का लंबा इतिहास छुपा हुआ है और इसे समझने के लिए आपको 273 ईसा पूर्व के कालखंड में चलना होगा. जब भारत में मौर्य वंश के तीसरे शासक अशोक का शासन था. यह वह दौर था जब अशोक को एक क्रूर शासक माना जाता था.


 लेकिन कलिंग युद्ध में हुए भयानक नरसंहार को देखकर सम्राट अशोक को बहुत धक्का लगा और वो राजपाट छोड़कर बौद्ध धर्म की शरण में चले गए. बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए सम्राट अशोक ने देश भर में चारों दिशाओं में शेरों की आकृति के गर्जना करते हुए अशोक स्तंभ बनवाएं. शेरों को इसमें शामिल करने का पर्याय भगवान बुद्ध को सिंह का प्रतीक माना जाता है. बौद्ध के 100 नामों में तभी नरसिंह नाम का उल्लेख मिलता है. इसके अलावा सारनाथ में दिए गए भगवान बुद्ध के धम्म उपदेश को सिंह गर्जना भी कहते हैं इसीलिए बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए शेरों की आकृति को महत्व दिया गया. यही कारण है कि सम्राट अशोक ने सारनाथ में ऐसा ही स्तम्भ बनवाया जिसे अशोक स्तंभ कहा जाता है और यही भारत की आजादी के बाद राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया.


अशोक स्तम्भ से जुड़ा एक विचित्र तथ्य यह भी है कि इसमें 4 शेरों को दर्शाने के बावजूद इसमें तीन शेर दिखाई देते हैं. गोलाकार आकृति के कारण किसी भी दिशा से देखने पर इसमें केवल तीन शेर ही दिखाई देते हैं. यही नहीं इसमें नीचे एक सांड और घोड़े की आकृति भी बनाई गई है.स्तंभ पर प्रदर्शित अन्य जानवर घोड़े, बैल, हाथी और शेर हैं. इस समय राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर सत्तारूढ़ सरकार और विपक्ष के बीच जमकर हंगामा हो रहा है. विपक्ष सत्तारूढ़ सरकार पर आरोप लगा रहा है कि यह क्या कर दिया तुमने; हमारे राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर? यह कैसा नेशनल एंबलम लगा दिया? सत्तारूढ़ सरकार ने हमारी नई संसद के ऊपर?


हाल ही में अशोक स्तंभ जैसी प्रतिकृति हमारी नई संसद भवन की छत पर लगाई गई है. सरकार का कहना है कि संसद भारत की है तो उस पर भारत का प्रतीक चिन्ह लगेगा ही और यह वैसा ही प्रतीक चिन्ह है जो संविधान बनाते वक्त अपनाया गया था. वैसे ही चार शेर और जानवर इस प्रतीक चिन्ह में बनाए गए हैं. लेकिन विपक्ष का कहना है कि हमारे पुराने प्रतीक चिन्ह में जो शेर दिखाए गए हैं वह बहुत ही शांत है. और अब नए बनाए गए शेर काफी क्रोधित नजर आ रहे हैं और यह बीजेपी का चेहरा दिखा रहे हैं जो संविधान का उल्लंघन है.


विपक्ष ने 3 आरोप लगाए हैं; उसमें पहला है कि प्रतीक चिन्ह का उद्घाटन लोकसभा के अध्यक्ष या हमारे माननीय राष्ट्रपति के द्वारा होना चाहिए था. सत्तारूढ़ दल के प्रधानमंत्री द्वारा इसका उद्घाटन करना उनकी पब्लिसिटी को दर्शाता है. उनका दूसरा आरोप है कि इस नए राष्ट्रीय प्रतीक को स्थापित करने के लिए हिंदू रीति-रिवाजों के माध्यम से पूजा करवाई गई जो कि भारत के धर्मनिरपेक्षता सिद्धांतों के खिलाफ है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और सरकार ने हिंदू रीति-रिवाजों के माध्यम से पूजा पाठ करवा कर संविधान के नियमों का उल्लंघन किया.


विपक्ष का तीसरा आरोप है कि दूसरी किसी भी पॉलीटिकल पार्टी के सदस्यों को इस कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया. विपक्ष का यह भी आरोप है कि ये शेर वास्तव में भारत के प्रतीक चिन्ह को न दिखाकर बीजेपी के अग्रेशन को दिखा रहे हैं. उनका कहना है कि भारत के शांतिप्रिय शेर अब देश में घृणा फैलाने वाले लग रहे है. मूल कृति के चेहरे पर सौम्यता का भाव तथा अमृत काल में बनी मूल कृति की नक़ल के चेहरे पर इंसान, पुरखों और देश का सबकुछ निगल जाने की आदमखोर प्रवृति का भाव मौजूद है. हर प्रतीक चिन्ह इंसान की आंतरिक सोच को प्रदर्शित करता है. इंसान प्रतीकों से आमजन को दर्शाता है कि उसकी फितरत क्या है.


विपक्ष ने इन्हे शांतिप्रिय से आदमखोर तक कह दिया. क्या भारत के प्रतीक चिन्ह को एक राजनीतिक मुद्दा बनाना सही है. अगर मेरी व्यक्तिगत राय पूछें तो शेरों के खुले मुहं को दिखाना एक बहुत अच्छी बात है. ये शेर हमारे राष्ट्रीय प्रतीक हैं. शांति हमारी आत्मा में बसी है लेकिन बदलते दौर में अग्रेशन दिखाना भी बहुत जरुरी है. क्योंकि आज के पॉलिटिकल युग में हम केवल शांति के दूत बनकर नहीं रह सकते. हम चारों तरफ दुश्मनों से घिरे हुए हैं इसलिए राष्ट्र के अग्रेशन को दिखाना बहुत जरूरी है. यह भारत की एग्रेसिव विदेश नीति का प्रतीक भी हो सकते हो सकते हैं ताकि दुश्मन इस देश की तरफ नजर करने से पहले हजार बार सोचे.


 किसी पॉलिटिकल पार्टी की विचारधारा को राष्ट्रीय प्रतीकों के साथ जोड़ना सरासर गलत है और यह विपक्ष की गलत धारणा है. इस सिंबल को बनाने वाले श्री सुनील देवदे ने यह बात साफ तौर पर कह दी है कि इस प्रतीक को बनाने में किसी भी पॉलीटिकल पार्टी का इंटरफेयर नहीं रहा है और ना ही किसी पार्टी ने इसको बनाने का ठेका उन्हें दिया है. नए संसद भवन के सेंट्रल फ़ोयर के शीर्ष पर कास्ट, 6.5 मीटर ऊंचा राष्ट्रीय प्रतीक कांस्य से बना है, और इसका वजन 9,500 किलोग्राम है. प्रतीक को सहारा देने के लिए लगभग 6,500 किलोग्राम वजन वाले स्टील की एक सहायक संरचना का निर्माण किया गया है. इमारत, जो सेंट्रल विस्टा परियोजना का मुख्य आकर्षण है, का निर्माण टाटा प्रोजेक्ट्स द्वारा किया जा रहा है. मूर्तिकला के डिजाइनरों ने दावा किया कि हर विवरण पर ध्यान दिया गया है. सिंह का चरित्र एक ही है. बहुत मामूली मतभेद हो सकते हैं, लोगों की अलग-अलग व्याख्याएं हो सकती हैं. यह एक बड़ी मूर्ति है और विभिन्न कोणों से ली गई तस्वीरें अलग-अलग छाप दे सकती हैं. मूल में उनके मुंह खुले हैं, ठीक उसी तरह जैसे नई संसद के ऊपर हैं.


राष्ट्रीय प्रतीक पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं अगर शेरों को इसमें एग्रेसिव दिखा भी दिया तो क्या गलत हो गया? यह तो है नहीं ये शेर सामने वाले को खा जाएंगे. एक प्रतीक "एक राष्ट्र, संगठन या परिवार के एक अद्वितीय प्रतीक चिन्ह के रूप में एक प्रतीकात्मक वस्तु" है. एक राष्ट्र का राष्ट्रीय प्रतीक एक मुहर है जिसे आधिकारिक उद्देश्यों के लिए निर्धारित किया जाता है और उच्चतम प्रशंसा और वफादारी का आदेश देता है. एक राष्ट्र के लिए, यह शक्ति का प्रतीक है और इसके संवैधानिक मूल्यों की नींव का प्रतीक है. मुंडक उपनिषद से सत्यमेव जयते शब्द, जिसका अर्थ है 'सत्य अकेले विजय', देवनागरी लिपि में अबेकस के नीचे अंकित हैं; का फैसला तो अब राजनितिक पार्टियां नहीं भारत देश की सम्पूर्ण जनता करेगी. कहीं शेरों के बहाने ये हंगामा, विपक्ष की दहशत का प्रतीक तो नहीं ?

- - Priyanka Saurabh

Research Scholar in Political Science

Poetess, Independent journalist and columnist,

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