स्वतंत्रता-दिवस विशेषांक हेतु गीत

स्वतंत्रता-दिवस विशेषांक गीत

स्वतंत्रता-दिवस विशेषांक हेतु गीत

(1)आज़ादी के अमृत उत्सव के इस पुण्य प्रहर में

आज़ादी के अमृत उत्सव के इस पुण्य प्रहर में।
आज तिरंगा लहराने दो हर घर, गाँव, शहर में।।

इस झंडे से सारे जग में है पहचान हमारी।
आन-बान सारे भारत की, है यह शान हमारी।।
आज तिरंगे को छाने दो जल, थल पर, अंबर में।
आज़ादी के अमृत उत्सव के इस पुण्य प्रहर में।।

इस झंडे के नीचे आकर देश हुआ है एक।
इसका वीरों के लोहू से किया गया अभिषेक।।
अति कृतज्ञता आज उमगती हर उर के अंतर में।
आज़ादी के अमृत उत्सव के इस पुण्य प्रहर में।।

रंग केसरी सिखलाता है देश के हित क़ुर्बानी।
शस्य श्यामला माँ भारत है, रंग ये कहता धानी।।
श्वेत वर्ण कहता है क़ायम करो शान्ति घर-घर में।
आज़ादी के अमृत उत्सव के इस पुण्य प्रहर में।।

चक्र मध्य में इसके कहता सतत है चलते जाना।
अहर्निशा चौबीसों घंटे चलना, मत सुस्ताना।।
पाँव जमे हों धरती पर लेकिन आकाश नज़र में।
आज़ादी के अमृत उत्सव के इस पुण्य प्रहर में।।

देश की खातिर जीना हमको देश की खातिर मरना।
देश का हित सधता हो जिसमें वही काम है करना।
यही भाव आबाल वृद्ध भरता हर नारी-नर में।
आज़ादी के अमृत उत्सव के इस पुण्य प्रहर में।।

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(2)आज़ादी का अमृत उत्सव मिलकर चलो मनाएँ

आज़ादी का अमृत उत्सव मिलकर चलो मनाएँ।
आओ, विजयी विश्व तिरंगा घर-घर पर फहराएँ।।

जिस झंडे की आन, बान पर मरे-मिटे सेनानी
कोड़े खाए अँगरेजों के, काटा काला पानी।
किन्तु न छोड़ी लगन मुक्ति की मन में थी जो ठानी।
आओ उन सब गाथाओं को पुनः -पुनः दुहराएँ।

आज़ादी का अमृत उत्सव मिलकर चलो मनाएँ।
आओ, विजयी विश्व तिरंगा घर-घर पर फहराएँ।।

भगत सिंह, करतार सराभा, बिस्मिल औ अशफ़ाक।
लाखों सेनानी बलिदानी इस पर हुए हलाक़।
याद करें उनको औ कायम रखें सदा अख़लाक।
रह कृतज्ञ उनके बलिदानों का कुछ कर्ज़ चुकाएँ!

आज़ादी का अमृत उत्सव मिलकर चलो मनाएँ
आओ, विजयी विश्व तिरंगा घर-घर पर फहराएँ।

देश तो है आज़ाद किन्तु अब भी भीषण बदहाली।
लक्ष लक्ष आबाल वृद्ध के पेट अभी तक खाली।
कहीं नहीं जल पाते चूल्हे, किन्तु कहीं दीवाली।
यह अबूझ गुत्थी अनसुलझी, आओ सब सुलझाएँ।

आज़ादी का अमृत उत्सव मिलकर चलो मनाएँ
आओ, विजयी विश्व तिरंगा घर-घर पर फहराएँ।


हम अखंड भारत के वारिस रखें सदा यह ध्यान।
भारत माता का दुनिया में सदा बढ़ाना मान।

इससे ही तो मिली हमें अपनी-अपनी पहचान।
इसके कण-कण, तृण-तृण पर आओ सब स्वत्व लुटाएँ


आज़ादी का अमृत उत्सव मिलकर चलो मनाएँ
आओ, विजयी विश्व तिरंगा घर-घर पर फहराएँ।

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डॉ. रामवृक्ष सिंह

लखनऊ,
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