लघुकथा -तिरंगा/tiranga

लघुकथा -तिरंगा

लघुकथा -तिरंगा/tiranga
विजय ना जाने क्यों झंडे की ही पूजा करते मिलता है, उसे कभी किसी देवता की पूजा करते मैंने नहीं देखा, रवि ने संजय से हैरानी से पूछा। हां भाई, मैंने भी देखा है ये तो, चलो विजय से ही चलकर पूछ लिया जाए की ऐसा इस झंडे में क्या है? संजय ने कहा।
दोनों ने जाकर विजय से पूछा, "भाई इस झंडे में ऐसा क्या है, जो तुम इसकी पूजा करते हो, हमें भी तो बताओ।"
विजय ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, यह झंडा नहीं, हम सबकी आन बान शान है। यह हमें क्या कुछ नहीं सिखाता। दोनों ने फिर अचरज से पूछा, इस झंडे से भला क्या सीखने को मिलता है?
विजय ने बताया कि हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के तीनों रंग अलग अलग शिक्षा प्रदान करते हैं, आओ मैं बताता हूं तुम्हें। केसरिया रंग जहां साहस, बलिदान, अध्यात्म एवं ऊर्जा का प्रतीक है और राष्ट्र के प्रति हिम्मत और निस्वार्थ भावनाओं को रख सब लोगों में एकता बनाए रखने की शिक्षा देता है। वहीं सफेद रंग सच्चाई, शांति, पवित्रता और ईमानदारी की न‍िशानी है, जो हमें सच्चाई की राह पर चलने की शिक्षा देता है। तिरंगे का तीसरा यानी हरा रंग विश्वास, उर्वरता, खुशहाली, समृद्धि और प्रगति का प्रतीक है। विजय ने ये बताते हुए उनसे पूछा, "तो बताओ क्यों ना करूं मैं अपने तिरंगे की पूजा। मैं इसे सर्वोपरी मानता हूं।
रवि और संजय दोनों ने तिरंगे पर गर्व करते हुए उत्तर दिया, अच्छा ये है मेरे तिरंगे की खासियत।
विजय ने कहा, मेरा नहीं हम सबका तिरंगा।

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— विकास बिश्नोई
लेखक एवं कहानीकार,
हिसार (हरियाणा)
7015184834
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