शीर्षक : लड़की और समाज
August 05, 2022 ・0 comments ・Topic: Jitendra Meena poem
शीर्षक : लड़की और समाज
लड़की का जीवनसिमटकर रह जाता है ,
चौखट , चूल्हे , चौके तक ।
जन्म के बाद ,
समाज ! उस खिलते फूल को
रौदने के लिये बोझ डाल देता है ।
आँधी में जो हालत पेड़ की होती है
समाज में लड़की की होती है ,
पर ! मजबूती से खड़ी रहती है ।
समाज ! सीखो उस लड़की से ,
जो समाज के ताने सुनकर भी
पेड़ की भाँति डटी रहती है ।
समाज ! सीखो उस फूल से ,
जो काटों के पेड़ पर भी
अपनी खुशबू बिखेरता है ।
चूल्हे सें निकलने वाली लपटें
वो सहती रहती है ,
तब मुश्किलें ?
एक लड़की का
संघर्ष देखकर ,
मुश्किलें भी डर जाती है ।
About Writer
© जीतेन्द्र मीना ' गुरदह '
करौली ( राजस्थान )
करौली ( राजस्थान )
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