कहानी –जड़

कहानी –जड़

ये हर रोज की कीच कीच मैं आज जड़ से ही खत्म कर देता हूं। ये ना मां बाप घर में रहेंगे, ना कोई क्लेश होगा। रमेश ने अपनी पत्नी सुनीता से कहा।
दो चार दिन निकलते ही रमेश ने दोनों का सामान समेटा और मां बाप को घर से निकाल दिया। बूढ़े मां बाप बेटे से घर में रहने की दुहाई देते हुए कह रहे थे, बेटा, इस उम्र में हम कहां जायेंगे। हमें घर से मत निकाल, हम आगे से तुम्हें और बिटिया सुनीता को कुछ नहीं कहेंगे। पर रमेश ने दोनों की एक नहीं सुनी और उन्हें घर से निकाल दिया। ये सब उनका 6 साल का बेटा उत्कर्ष देख रहा था और दादा दादी के साथ रहने के लिए बस रोए जा रहा था। सुनीता ने उसे थप्पड़ लगाया और हाथ पकड़ अंदर ले गई।
थोड़े दिन गुजरे ही थे कि रमेश की बाइक का किसी गाड़ी से टकराने की वजह से एक्सीडेंट हो गया। सड़क से कुछ लोगों ने नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया और फोन से नंबर ढूंढकर उसके पिता और पत्नी को फोन कर दिया। माता पिता, पत्नी और उसका बेटा तुरंत अस्पताल पहुंच गए। पत्नी सुनीता बेटे को लिए एक तरफ खड़ी थी, तो माता पिता दूसरी तरफ। वहां आने पर पता लगा कि रमेश के एक हाथ में फ्रैक्चर हो गया और काफी खून बह गया है। सभी बेहद चिंतित हो गए थे।
पिता के हाथ में फ्रैक्चर देख बेटे उत्कर्ष ने अपनी मां से पूछा, ये क्या हुआ है पापा के हाथ में और ये पट्टी क्यों बांधी है?
मां ने बेटे को रोते हुए बताया कि, 'आपके पापा के हाथ में चोट लगी है। इसलिए ये पट्टी बांधी हुई है।
फिर पापा को दर्द भी बहुत हो रहा होगा ना मां, उत्कर्ष ने पूछा।
हां बेटा, मां ने धीमी आवाज में कहा।
मां फिर पापा का एक पूरा हाथ काट के अलग ही कर दो ना, दर्द जड़ से खत्म हो जाएगा ना, जैसे दादा दादी को घर से निकालकर लड़ाई को जड़ से खत्म कर दिया था।
उत्कर्ष की बात सुन कमरे में अब सन्नाटा पसर गया था।
इतने में डॉक्टर ने नर्स को भेजकर परिवार को संदेश पहुंचाया कि रमेश को खून की सख्त जरूरत है और अस्पताल में इस वक्त खून उपलब्ध नहीं है।
सुनकर जहां सुनीता ओर जोर से रोने लगी, वहीं रमेश के पिता को याद आया कि उनका और रमेश का ब्लड ग्रुप एक ही है। उन्होंने तुरंत खून देने की बात कही।
डॉक्टर ने रमेश के पिता को देख कहा कि, 'आप पुनः एक बार सोच लीजिए, इस उम्र में आपका खून देना आपके लिए भी सही नहीं है।'
रमेश के मां बाप दोनों ने डॉक्टर को हाथ जोड़ कहा, साहब, हमारे बेटे से ज्यादा जरूरी नहीं है हमारी जान की कीमत। आप जल्दी खून ले लीजिए, बस हमारे बच्चे को बचा लीजिए। कागजी कार्यवाही पूरी करवाने के बाद पिता के खून देने से रमेश की जान अब बच चुकी थी।
रमेश और सुनीता अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे। दोनों ने माता पिता के सामने रोते हुए हाथ जोड़ उनसे माफी मांगी। पिता ने बेटे और मां ने सुनीता को गले लगा लिया।

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Vikash Bishnoi
- विकास बिश्नोई
युवा लेखक एवं कहानीकार
हिसार, हरियाणा
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