कविता-तब से आदमी भी पेंड़ होना चाहता है ..!
कविता-तब से आदमी भी पेंड़ होना चाहता है ..!
मैं उस हरकारे के बच्चों को भी उसी
समय से देख रहा था
जिस समय से मैं उस बरगद
के पेंड़ को देखा करता था
पेंड़ के आसपास और भी लत्तरें
थींं l
पेंड़ की फुनगियों के बीच से
कई कोंपलें फूटीं और
पेंड़ की कोपलों ने धीरे - धीरे
धीरे बड़ा होना शुरू किया l
हरकारे के चार बच्चे थें l
हरकारे के बच्चे जमींदारों
के यहाँ काम करते थें
मैं देख रहा था पेंड़ को और
उसके साथ खिले कोंपलों
को बढ़ते l
हरकारे के बच्चों और
पेंड़ को मैनें इंच-इंच बढ़ते
देखा ..
इस बीच पेंड़ के आसपास
का समय भी बीतता रहा l
कोंपलें भी धीरे-धीरे लत्तरों में बदलीं
फिर लतरें तना बन गईं..!
और , पेंड़ के आस-पास खड़े
हो गये वो
पेंड़ के रक्षार्थ..!
साथ- साथ जन्मी और भी कोंपलें
पहले लत्तर बनीं फिर तना
और फिर हरकारे के बच्चों की तरह
वो भी फैल गईं
अनंत दिशाओं में ..!
लत्तरों , ने बारिश झेला , धूप भी
लत्तरें , ठिठुरती रहीं ठंड में
तब भी साथ - साथ थीं l
सुख - दु:ख साथ - साथ महसूसा !
लत्तरों ने वसंत देखा पतझड़ भी !
बड़े होने के बाद हरकारे के बच्चों
ने कभी नहीं पूछा अपने सगे भाइयों
से उनका हाल !
भाईयों ने फिर कभी आँगन
में साथ बैठकर घूप या गर्मी पर
बात नहीं की ..
समय बीतता रहा
ऋतुएँ , बदलती रहीं
लेकिन , हरकारे के लड़के दु:ख भी अकेले
पी गये ..दु:ख भी नहीं बाँटा किसी से ..!
सालों से कभी साथ बैठकर
किसी समस्या का सामाधान
वो खोज नहीं पाये l
फिर , साथ बैठकर कभी नहीं देख पाये
भोर होने के बाद ओस में नहाई हुई फसल !
या सुबह की कोई उजास ..
पता नहीं कितने साल बीत गये l
जब गाँव में काम मिलना बँद हो गया
फिर , वो कहीं कमाने चले गये
दिल्ली या पँजाब ..
बूढ़ा हरकारा जब मरा तो दाह संस्कार
भी गाँव के लोगों ने किया !
हरकारे के लड़कों ने फिर कभी
पलटकर नहीं देखा गाँव !
हरकारे की मौत से दु:खी होकर
बूढ़ा होता मकान भी एक दिन
ढह कर गिर गया l
लेकिन , तब भी हरकारे के लड़के
नहीं लौटे .. !
लेकिन , बूढ़े पेंड़ की हिफाजत में
आज भी खड़े थें युवा पेंड़..!
पेंड़ अब अपनी दहलीज की
झिलंगी खाट पर
पड़ा रहता l
बूढ़ा , पेंड चिलम भरकर
पीता .. शेखी बघारता गाँव में
कि उसकी डयोढ़ी ..बहुत मजबूत हैं ..!
और कि , वो युवा पेंड़ों की हिफाजत में है ..!
तब से आदमी भी पेंड़ होना चाहता है !
सर्वाधिकार सुरक्षित
महेश कुमार केशरी
About author
परिचय -
नाम - महेश कुमार केशरी
जन्म -6 -11 -1982 ( बलिया, उ. प्र.)
शिक्षा - 1-विकास में श्रमिक में प्रमाण पत्र (सी. एल. डी. , इग्नू से)
2- इतिहास में स्नातक ( इग्नू से)
3- दर्शन शास्त्र में स्नातक ( विनोबा भावे वि. वि. से)
अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन - सेतु आनलाईन पत्रिका (पिटसबर्ग अमेरिका से प्रकाशित) .
राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन- वागर्थ , पाखी , कथाक्रम, कथाबिंब , विभोम - स्वर , परिंदे , गाँव के लोग , हिमप्रस्थ , किस्सा , पुरवाई, अभिदेशक, , हस्ताक्षर , मुक्तांचल , शब्दिता , संकल्य , मुद्राराक्षस उवाच , पुष्पगंधा ,
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चयन - (1 )प्रतिलिपि कथा - प्रतियोगिता 2020 में टाॅप 10 में कहानी " गिरफ्त " का चयन
(2 ) पच्छिम दिशा का लंबा इंतजार ( कविता संकलन )
जब जँगल नहीं बचेंगे ( कविता संकलन ), मुआवजा ( कहानी संकलन )
(3)संपादन - प्रभुदयाल बंजारे के कविता संकलन " उनका जुर्म " का संपादन..
(4)-( www.boltizindgi.com) वेबसाइट पर कविताओं का प्रकाशन
(5) शब्द संयोजन पत्रिका में कविता " पिता के हाथ की रेखाएँ "
का हिंदी से नेपाली भाषा में अनुवाद सुमी लोहानी जी द्वारा और " शब्द संयोजन " पत्रिका में प्रकाशन आसार-2021 अंक में.
(6) चयन - साझा काव्य संकलन " इक्कीस अलबेले कवियों की कविताएँ " में इक्कीस कविताएँ चयनित
(7) श्री सुधीर शर्मा जी द्वारा संपादित " हम बीस " लघुकथाओं के साझा लघुकथा संकलन में तीन लघुकथाएँ प्रकाशित
(8) सृजनलोक प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित और संतोष श्रेयंस द्वारा संपादित साझा कविता संकलन " मेरे पिता" में कविता प्रकाशित
(9) डेली मिलाप समाचार पत्र ( हैदराबाद से प्रकाशित) दीपावली प्रतियोगिता -2021 में " आओ मिलकर दीप जलायें " कविता पुरस्कृत
(10) शहर परिक्रमा - पत्रिका फरवरी 2022- लघुकथा प्रतियोगिता में लघुकथा - " रावण" को प्रथम पुरस्कार
(11) कथारंग - वार्षिकी -2022-23 में कहानी " अंतिम बार "
प्रकाशित
(12)व्यंग्य वार्षिकी -2022 में व्यंग्य प्रकाशित
(13) कुछ लघुकथाओं और व्यंग्य का पंजाबी , उड़िया भाषा में अनुवाद और प्रकाशन
(14)17-07-2022 - वर्ल्ड पंजाबी टाइम्स चैनल द्वारा लिया गया साक्षात्कार
(15) पुरस्कार - सम्मान - नव साहित्य त्रिवेणी के द्वारा - अंर्तराष्ट्रीय हिंदी दिवस सम्मान -2021
संप्रति - स्वतंत्र लेखन एवं व्यवसाय
संपर्क- श्री बालाजी स्पोर्ट्स सेंटर, मेघदूत मार्केट फुसरो, बोकारो झारखंड -829144