इस धरा पर.... " (कविता...)
नन्हीं कड़ी में....
आज की बात
"इस धरा पर.... "
(कविता...)
सूरज की पहली किरण से,
जैसे जगमग होता ये संसार।
दीपों की सुनहरी चमक से,
उज्ज्वल हो जाता हर द्वार।।
दीप पर्व की अनुपम छटा से,
मिट जाता गहरा अंधकार।
विचारों की सकारात्मकता से,
महक जाता जीवन रूपी ये संसार।।
आस्था के पुष्प खिलने से,
खिलने लगी हर एक बगिया।
नयन मिले जब भगवन से,
रात-रात भर जागें ये अखियां।।
भक्ति के दीपक जलने से,
दिल ये धड़कता बारंबार।
मनमोहन के दर्शनों से,
मैं वारी जाऊं बलिहार।।
अयोध्या थी सूनी श्रीराम बिन,
कैसे लगता यहाँ खुशियों का अंबार।
सबकी व्यथा हुई दूर आज ही के दिन,
जब लौट आए रघुनंदन अयोध्या के द्वार।।
फिर इस धरा पर जगमगाया संसार,
सज रहे हैं आज घर-घर-द्वार- द्वार।
लगता है जैसे जन्म दुबारा ले रहें हैं श्रीराम,
संपूर्ण देश में गूंजेगा राम जी का नाम।।
इस दीपावली पर खिलते हुए,
हर चेहरे का प्रतीक हैं श्रीराम।
नाश बुराई का करते हुए,
रामराज्य लाएंगे प्रभु श्रीराम।।
आज की बात
"इस धरा पर.... "
(कविता...)
सूरज की पहली किरण से,
जैसे जगमग होता ये संसार।
दीपों की सुनहरी चमक से,
उज्ज्वल हो जाता हर द्वार।।
दीप पर्व की अनुपम छटा से,
मिट जाता गहरा अंधकार।
विचारों की सकारात्मकता से,
महक जाता जीवन रूपी ये संसार।।
आस्था के पुष्प खिलने से,
खिलने लगी हर एक बगिया।
नयन मिले जब भगवन से,
रात-रात भर जागें ये अखियां।।
भक्ति के दीपक जलने से,
दिल ये धड़कता बारंबार।
मनमोहन के दर्शनों से,
मैं वारी जाऊं बलिहार।।
अयोध्या थी सूनी श्रीराम बिन,
कैसे लगता यहाँ खुशियों का अंबार।
सबकी व्यथा हुई दूर आज ही के दिन,
जब लौट आए रघुनंदन अयोध्या के द्वार।।
फिर इस धरा पर जगमगाया संसार,
सज रहे हैं आज घर-घर-द्वार- द्वार।
लगता है जैसे जन्म दुबारा ले रहें हैं श्रीराम,
संपूर्ण देश में गूंजेगा राम जी का नाम।।
इस दीपावली पर खिलते हुए,
हर चेहरे का प्रतीक हैं श्रीराम।
नाश बुराई का करते हुए,
रामराज्य लाएंगे प्रभु श्रीराम।।