गुंजा के दाने
गुंजा के दाने
रमणीय , मनमोहक , चमकदारगुंजा के दाने मन को हर जाते है
सुर्ख चटकीले लाल रंग लिये ये
काले रंग की जैसे टोपी पाते हैं ।।
सुंदर इतने कि देख लगे जैसे
स्वादिष्ट, स्वाद इसमें समाते हैं
लेकिन दिखने में जो सुंदर इतने
उसके भीतर विष खूब समाते हैं।।
गुंजा के जैसे ही मानव की दुनिया
बाहर से सुंदर अंदर शैतान समाते हैं
देखो कितने मासूम बच्चे , लड़कियां
खुबसूरती के भंवर में फंस जाते हैं।।
हर साल कितने ही बच्चों के अपहरण
लड़कियों संग बलात्कार सुर्खी में पाते हैं
इनमें से कुछ शातिर गुंजा के दाने से
परिचित सदस्य नकाब लगाए आते हैं।।
कैसे पहचाने कोई नकाब चेहरों के
कौन दिल के भीतर जहर रख जाते हैं
बदला , दुश्मनी , जलन के चलते आज
जहरीले गुंजा के दाने से मार जाते हैं।।
कहते कलयुग आएगा जल्द धरा पर
अभी बताओ कौन सा सत्य युग पाते हैं
कलयुग तो चल रहा है अभी भी जग में
इसी जहर को हम तो कलयुग बताते हैं।।
जितने रमणीय देखो हिमाचल वादी
वहीं आतंक , मौत की खाई , पहाड़ ढहना
मौत के बादल पग-पग में सब पाते हैं।।
कब कहां बादल फट जाएं कोई न जाने
हिमाचल गुंजा के दाने सा परिभाषित
हम कर जाते हैं।।
देखो आज देश की राष्ट्रीय कार्यकारिणी
गुंजा के दाने से समझ जनता चुन जाते हैं
वही देश के भीतर से स्वार्थ सिद्ध कर
गुंजा के दाने के भीतर सा गुण बन
देश की नींव हिला खोखला कर जाते हैं।।
परिवारों के भीतर भी झांकों कोई तो
सात वचन अब कहां रिश्तों मे समाते हैं
पवित्र गुंजा के दाने से सुंदर रिश्ते में इंसा
अब बाहर वाली का जहर घोल जाते हैं।।
गुंजा के दाने... ऊपर से
मनमोहक गुंजा के दाने...भीतर से
जहरीले गुंजा के दाने...
उफ्फ् ये गुंजा के दाने।।