मत करिये उपहास | mat kariye uphas

मत करिये उपहास

अपना बोया ही मिले,
या कांटें या घास।
बे-मतलब ना बोलिये,
मत करिये उपहास।

मत करिये उपहास,
किसी का जान-बूझकर।
निकले हर इक शब्द,
अंतर्मन से पूछकर ।।

सुन ‘सौरभ’ की बात,
किसी पर न तंज कसना।
औरों-सा खुद मान,
ले हर इक बने अपना।।

पाकर तुमको है मिली,
मुझको ख़ुशी अपार ।
होती है क्या ज़िन्दगी,
देखा रूप साकार ।

देखा रूप साकार,
देखूँ क्या अब मैं अन्य ।
तेरा सुन्दर रूप,"परी",
पाकर हुई धन्य ।।

सुन ‘सौरभ’ की बात,
मिले क्या मन्दिर जाकर।
मुझको तो है सब मिला,
साथ तुम्हारा पाकर ।।
(प्रियंका सौरभ के काव्य संग्रह 'दीमक लगे गुलाब' से।)

About author 

-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

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