नगाड़े सत्य के बजे |Nagade satya ke baje

 नगाड़े सत्य के बजे

बजे झूठ पर तालियां,
केवल दिन दो-चार।
आखिर होना सत्य ही,
सब की जुबां सवार।।

सब की जुबां सवार,
दौड़ता बिजली जैसे ।
झूठ फिर हक्का-बक्का,
सभी को रोके कैसे।

सच ‘सौरभ’ कह रही,
मन से अभी झूठ तजे।
गली-गली, हर जगह,
नगाड़े सत्य के बजे ।।

लिखने लायक है नही,
राजनीति का हाल।
कुर्सी पे काबिज हुऐ,
गुण्डे चोर दलाल।।

गुण्डे, चोर, दलाल,
करते है नित उत्पात।
झूठ-लूट से करे,
जनता के भीतर घात।।

सुन ‘सौरभ’ की बात,
पाप है इनके इतने।
लिखे न जाये यार,
अगर बैठे हम लिखने।।
(प्रियंका सौरभ के काव्य संग्रह 'दीमक लगे गुलाब' से।

About author 

-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

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twitter- https://twitter.com/pari_saurabh


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