नगाड़े सत्य के बजे |Nagade satya ke baje
नगाड़े सत्य के बजे
बजे झूठ पर तालियां,
केवल दिन दो-चार।
आखिर होना सत्य ही,
सब की जुबां सवार।।
सब की जुबां सवार,
दौड़ता बिजली जैसे ।
झूठ फिर हक्का-बक्का,
सभी को रोके कैसे।
सच ‘सौरभ’ कह रही,
मन से अभी झूठ तजे।
गली-गली, हर जगह,
नगाड़े सत्य के बजे ।।
लिखने लायक है नही,
राजनीति का हाल।
कुर्सी पे काबिज हुऐ,
गुण्डे चोर दलाल।।
गुण्डे, चोर, दलाल,
करते है नित उत्पात।
झूठ-लूट से करे,
जनता के भीतर घात।।
सुन ‘सौरभ’ की बात,
पाप है इनके इतने।
लिखे न जाये यार,
अगर बैठे हम लिखने।।
केवल दिन दो-चार।
आखिर होना सत्य ही,
सब की जुबां सवार।।
सब की जुबां सवार,
दौड़ता बिजली जैसे ।
झूठ फिर हक्का-बक्का,
सभी को रोके कैसे।
सच ‘सौरभ’ कह रही,
मन से अभी झूठ तजे।
गली-गली, हर जगह,
नगाड़े सत्य के बजे ।।
लिखने लायक है नही,
राजनीति का हाल।
कुर्सी पे काबिज हुऐ,
गुण्डे चोर दलाल।।
गुण्डे, चोर, दलाल,
करते है नित उत्पात।
झूठ-लूट से करे,
जनता के भीतर घात।।
सुन ‘सौरभ’ की बात,
पाप है इनके इतने।
लिखे न जाये यार,
अगर बैठे हम लिखने।।
(प्रियंका सौरभ के काव्य संग्रह 'दीमक लगे गुलाब' से।
About author
-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
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