सोच | soch- रीना सोनालिका
सोच
उन दिनों की है जब हमारी नई नई शादी हुई थी ,ओर हम हनीमून के लिए बाहर घूमने गए थे ,तभी उनका एक दोस्त मिला ,ओर उसने हम दोनों को देखा और तुरंत ये कह दिया कि हमारी जोड़ी अच्छी नहीं है ,क्यूंकि इनका रंग गोरा ओर मेरा रंग सांवला था ,पर हमारे नयन नक्स बहुत तीखे थे ,ओर मै सांवली होकर भी बहुत खूबसूरत लगती थी , ओर मेरे अंदर वो सारे गुण थे जो एक संस्कारी ओर एक अच्छी बहू मै होता है , मै पढ़ी लिखी भी थी ओर साथ साथ घर के सारे काम काज मै निपुण थे ,ये सारे गुण मेरे में मौजूद थे,जिसको देखकर मेरे ससुराल वाले ने शादी के लिए हा कर दी ओर मै शादी करके इनके साथ ससुराल चली आई, किसी को हमसे कोई शिकयत नहीं था सभी लोग घर में बहुत खुश ओर मुझे बहुत प्यार करते थे , क्यूंकि उन्हें घर संवारने के लिए ने बहू चाहिए था चाहे रंग गोरा हो या संबला क्या फर्क पड़ता ,घर मै खुशियों तो है ,तो ओर मै सभी लोगो को खुश रखी हू । इन सब बातों को लेकर ये हमारे पति बहुत खुश थे । ओर इन्हे हमसे कोई गिला शिकवा नहीं था । इसलिए उन्होंने अपने दोस्तो को कह दिया हमारी जोड़ी बहुत अच्छी क्यूंकि हमारी रिश्ता गोरे रंग की लड़की से नहीं बल्कि संबली रंग की लड़की से हुआ है , जो सबको दिलो पर राज करती है, ऐसे भी जीवन रंग से नहीं लड़की के खूबसूरत ढंग से चलती है , सलाम करती हू ऐसे पति को जिनकी इतनी अच्छी सोच है।About author
जिला बोकारो राज्य झारखंड।
स्वरचित एवम मौलिक