कविता –हलचल| kavita halchal

शीर्षक-हलचल

हलचल हिय में हो रही ,जैसे नदी तरंग ।
आकुल मैं नवयौवना,पुलकित है हर अंग।।

जाने कब होंगे मुझे, उस प्रियवर के दर्श।
जिसके मुख को देखकर, मिले प्रेम का अर्श।।
लेकर मन की तूलिका, सजा रही नित रंग।
हलचल हिय में हो रही, जैसे नदी तरंग।।

मिलन रागिनी मन सुने, करे प्रणय की बात।
उड़े कल्पना लोक उर, जागे सारी रात।।
जैसे बहती है हवा, ऐसी हृदय उमंग।
हलचल हिय में हो रही, जैसे नदी तरंग ।।

मीठे-मीठे दर्द से ,मन पाता आराम।
प्रीति अनूठी मीत की, मिलती है बेदाम।।
काश! उम्र भर के लिए, रहूँ मीत के संग।
हलचल हिय में हो रही, जैसे नदी तरंग।।

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प्रीति चौधरी "मनोरमा" जनपद बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
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