आईपीसी की धारा 498 ए पर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

आईपीसी की धारा 498 ए पर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

आईपीसी की धारा 498 ए पर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
पति पत्नी के बीच विवाह अमान्य व शून्य हो तो आईपीसी 498 ए के तहत अपराध बरकरार नहीं
देश भर में धारा 498 ए के तहत दर्ज़ मामलों में कन्विकेशन रेट अति कम को संबंधित एजेंसियों द्वारा रेखांकित करना ज़रूरी - एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर भारतीय चुनाव आयोग की लोकतांत्रिक व्यवस्था, न्याय का मंदिर भारतीय न्यायिक प्रणाली व्यवस्था सहित अनेक संवैधानिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा साख के उदाहरण दिए जाते हैं। भारतीय चुनाव आयोग कई देशों में मार्गदर्शन सर्वेयर की सेवाएं भी देता रहता है। हम अक्सर बड़े से बड़े पद धारक व्यक्ति से लेकर गरीबी के अंतिम पायदान व्यक्ति तक को कहते हुए सुनते हैं कि हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। अनेक विवादों में हम टीवी चैनलों पर देखते हैं कि पक्ष विपक्ष से कहता है कुछ शंका शोभा हो तो न्यायपालिका चले जाओ, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। जेएमएफसी से लेकर उच्चतम न्यायालय तक एक प्रक्रिया के तहत अपीलों का मार्ग खुला रहता है, जिसमें एक कोर्ट से न्याय पर अगर संतुष्टि नहीं है तो उसके आगे की कोर्ट में इंसाफ़ की गुहार लगाई जा सकती है। चूंकि दिनांक 22 जुलाई 2023 को शाम एक राज्य की माननीय हाईकोर्ट ने 498 ए पर एक महत्वपूर्ण फैसला दो उच्चतम न्यायालय के फसलों को आधार बनाते हुए दिया है कि दूसरी पत्नी अगर 498 ए में शिकायत करती है तो चूंकि उसकी शादी अमान्य वह शून्य रहती है इसलिए वह इस धारा में शिकायत कराने की हकदार नहीं है। वैसे भी हम नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े देखें तो इस धारा में सजा केवल 17 फ़ीसदी को ही है और समय-समय पर विभिन्न राज्यों की माननीय हाईकोर्ट द्वारा तथा उच्चतम न्यायालय ने भी अनेक गाइडलाइंस दी है। चूंकि आज के इस मामले में दूसरी पत्नी को 498 ए में शिकायत को अमान्य माना गया है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, पति पत्नी के बीच विवाह अमान्य व शून्य हो तो आईपीसी 498 ए के तहत अपराध बरकरार नहीं। देश भर में धारा 498 ए के तहत दर्ज मामलों में कन्विकेशन रेट अति कम को संबंधित एजेंसियों द्वारा रेखांकित करना ज़रूरी है।
साथियों बात अगर हम 498 ए को समझने की करें तोअगर किसी शादीशुदा महिला पर उसके पति या उसके ससुराल वालों की ओर से किसी तरह की क्रूरता की जा रही है तो आईपीसी की धारा 498 ए के तहत ये अपराध के दायरे में आता है।क्रूरता,शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की हो सकती है। शारीरिक क्रूरता में महिला से मारपीट करना शामिल है, वहीं, मानसिक क्रूरता में उसे प्रताड़ित करना, ताने मारना, उसे तंग करना जैसे बर्ताव शामिल है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498(ए) पति और उसके घर के लोगों पर पत्नी पर क्रूरता करने के संबंध में लागू होती है। इस धारा का अर्थ यह है कि किसी भी शादीशुदा महिला को यदि उसके पति द्वारा क्रूरतापूर्वक परेशान किया जा रहा है या उसके पति के साथ उसके पति के रिश्तेदार मिलकर उस शादीशुदा महिला को परेशान कर रहे हैं, तब आईपीसी की धारा 498(ए) लागू होती है।इस धारा में पति और उसके रिश्तेदारों को तीन वर्ष तक की सजा से दंडित किए जाने का प्रावधान है। कोई भी पीड़ित महिला संबंधित थाना क्षेत्र में इस अपराध की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे सकती है। अनेक मामलों में यह देखा गया है कि इस धारा का दुरुपयोग किया जा रहा है। अनेक शिकायतें इस धारा से संबंधित भारत के उच्चतम न्यायालय के समक्ष गई है। स्पष्टीकरण-इस धारा के अनुसार, क्रूरता से निम्नलिखित आशय है,(क) जानबूझकर एसा व्यवहार करना जो शादीशुदा महिला को आत्महत्या करने के लिए या उसके शरीर के किसी अंग या उसके जीवन को नुकसान पहुँचाने के लिए (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) उकसाये या (ख) शादीशुदा महिला के माता-पिता, भाई-बहन या अन्य रिश्तेदार से किसी संपत्ति या कीमती वस्तु (जेसे सोने के जेवर, मोटर - गाड़ी आदि) की गेर-कानूनी माँग पुरी करवाने के लिए या ऐसी मांग पूरी ना करने के कारण उसे तंग किया जाना।
साथियों बात अगर हम दिनांक 22 जुलाई 2023 को एक राज्य के माननीय हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले की करें तो, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (क्रूरता के अधीन विवाहित महिला) के तहत एक 46 वर्षीय व्यक्ति की सजा को रद्द कर दिया है क्योंकि शिकायत उसकी दूसरी पत्नी द्वारा की गई थी जो शादी को अमान्य बना देती है।न्यायमूर्ति की एकल न्यायाधीश पीठ ने हाल ही में अपने फैसले में कहा, एक बार जब पीडब्लू.1 (शिकायतकर्ता महिला) को याचिकाकर्ता की दूसरी पत्नी माना जाता है, तो जाहिर है, आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अपराध के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ दायर शिकायत पर विचार नहीं किया जाना चाहिए, दूसरे शब्दों में, दूसरी पत्नी द्वारा पति और उसके ससुराल वालों के खिलाफ दायर की गई शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है। निचली अदालतों ने इस पहलू पर सिद्धांतों और कानून को लागू करने में त्रुटियां की हैं, इसलिए, पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में इस अदालत द्वारा हस्तक्षेप उचित है।अदालत एक जिले के एक गांव निवासी द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी।शिकायतकर्ता महिला ने दावा किया था कि वह उसकी दूसरी पत्नी थी और वे पांच साल तक साथ रहे और उनका एक बेटा भी है, लेकिन बाद में उनमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो गईं और वह पक्षाघात से प्रभावित होकर अक्षम हो गईं। पति ने कथित तौर पर इस बिंदु के बाद उसे परेशान करना शुरू कर दिया और उसे क्रूरता और मानसिक यातना दी। उसने उसके खिलाफ शिकायत दर्ज की और ट्रायल कोर्ट ने सुनवाई के बाद 18 जनवरी, 2019 को एक आदेश में उसे दोषी पाया था।अक्टूबर 2019 में सत्र न्यायालय ने सजा की पुष्टि की थी। पति नें 2019 में पुनरीक्षण याचिका के साथ उच्चन्यायालय का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया क्योंकि उसने पाया कि दूसरी पत्नी धारा 498ए के तहत शिकायत दर्ज करने की हकदार नहीं है। हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (विवाहित महिला के साथ क्रूरता) के तहत व्यक्ति की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया क्योंकि शिकायत उसकी दूसरी पत्नी की थी। उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत के दो फैसलों शिवचरण लाल वर्मा मामला और पी शिवकुमार मामले का हवाला देते हुए कहा, उच्चतम न्यायालय के इन दो निर्णयों से स्पष्ट है कि यदि पति और पत्नी के बीच विवाह अमान्य और शून्य के रूप में समाप्त हो गया, तो आईपीसी की धारा 498 ए के तहत अपराध बरकरार नहीं रखा जा सकता है। दोषसिद्धि को रद्द करते हुए अदालत ने कहा कि गवाही से साबित हुआ कि महिला याचिकाकर्ता की दूसरी पत्नी थी।
साथियों बात अगर हम एनसीआरबी द्वारा 498 ए संबंधी आंकड़ों की करें तो, भारत में धारा 498 ए के तहत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या सालाना बढ़ती जा रही है, हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के जितने मामले दर्ज होते हैं, उनमें से 30 प्रतिशत से ज्यादा धारा 498 ए के ही होते हैं।नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में धारा 498A के तहत देशभर में 1.36 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे जबकि, इससे एक साल पहले 2020 में 1.11 लाख मामले दर्ज किए गए थे।वहीं, अगर धारा 498 ए के मामलों में कन्विक्शन रेट देखें तो सिर्फ 100 में से 17 केस ही ऐसे हैं जिनमें दोषी को सजा मिलती है।2021 में अदालतों में धारा 498 ए के 25,158 मामलों में ट्रायल पूरा हुआ था, इनमें से 4,145 मामलों में ही आरोपी पर दोष साबित हुआ था। बाकी मामलों में या तो समझौता हो गया था या फिर आरोपी बरी हो गए थे।
साथियों बात अगर हम 498 ए के दुरुपयोग की करें तो पहले भी उठ चुके हैं दुरुपयोग पर सवाल, जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने दुरुपयोग रोकने के लिए धारा 498 ए के तहत तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि ऐसे मामलों में पहले जांच-पड़ताल कीजाएगी कि महिला की शिकायत सही है या नहीं। ये काम एक समिति का होगा और इसकी रिपोर्ट आने के बाद ही पुलिस गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई कर सकती है,हालांकि, एक साल बाद ही सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जुलाई 2017 के फैसले में सुधार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समिति का गठन करना अनुचित है। कोर्ट का मानना था कि कोई समिति, पुलिस या अदालत जैसा काम कैसे कर सकती है। इतना ही नहीं, पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498 ए के दुरुपयोग को लेकर टिप्पणी करते हुए कुछ निर्देश जारी किए थे।सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, अगर किसी महिला के साथ क्रूरता हुई है तो क्रूरता करने वाले व्यक्तियों के बारे में भी बताना होगा,पीड़ित महिला को साफ बताना होगा कि किस समय, किस दिन, उसके साथ उसके पति और उसके ससुराल के किन लोगों ने किस तरह की क्रूरता की है। केवल ये कह देने से कि उसे परेशान किया जा रहा है, इससे धारा 498 ए का मामला नहीं बनता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आईपीसी की धारा 498 ए पर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला।पति पत्नी के बीच विवाह अमान्य व शून्य हो तो आईपीसी 498 ए के तहत अपराध बरकरार नहीं।देश भर में धारा 498 ए के तहत दर्ज़ मामलों में कन्विकेशन रेट अति कम को संबंधित एजेंसियों द्वारा रेखांकित करना ज़रूरी है।

About author

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 
किशन सनमुख़दास भावनानी 
गोंदिया महाराष्ट्र 
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url