टाइटैनिक: प्रेम और जहाज की ट्रेजडी

सुपरहिट  टाइटैनिक: प्रेम और जहाज की ट्रेजडी

टाइटैनिक: प्रेम और जहाज की ट्रेजडी
11 साल पहले नार्थ एटलांटिक महासागर में डूब गया 'टाइटेनिक' कभी समाचारों से गायब नहीं होता। आधुनिक मानव इतिहास का (उस समय) जितना बड़ा जहाज था, उतनी ही बड़ी यह दुर्घटना थी। जिस समय इसका निर्माण किया गया था, उस समय इसे सब से सुरक्षित जहाज होने की घोषणा की गई थी। 15 अप्रैल, 1912 को जब यह डूबा था, उस समय इसमें 2,224 यात्री सवार थे। इसमें से 1,500 से अधिक लोग जहाज के साथ ही समुद्र में समा गए थे।
23 जून को एक बार फिर टाइटेनिक समाचारों में चमका। इसका कचरा अभी भी समुद्र की तलहटी में है। समुद्रशास्त्रियों से ले कर साहसिक लोग समय-समय पर डुबकी लगा इसकी खोज करते रहते हैं। अभी हाल में टाइटेन नाम का एक सबमर्सिबल वाहन टाइटेनिक ने जहां जलसमाधि ली थी, वहीं डूब गया और उसमें सवार 5 लोगों की मौत हो गई।
जहाज डूबने के 73 साल बाद 1985 में पहली बार समुद्र तल में इसके कचरे की खोज हुई। उसी के बाद 'टाइटेनिक टूरिज्म' की शुरुआत हुई। अमेरिका की ओसन गेट नाम की एक कंपनी इस तरह का टूर चलाती है। मिनीवान कद का द टाइटेन वाहन इसी कंपनी का था। वह समुद्र में टूट गया तो यह समाचार आया तो 33 बार कचरे का चक्कर मार कर आने वाले हालीवुड के फिल्म निर्देशक जेम्स केमरून ने बीबीसी से कहा था कि उन्हें जब पहली बार समाचार मिला कि सबमर्सिबल का नेवीगेशन और कम्यूनिकेशन संपर्क नहीं हो रहा है, तभी मुझे लगा कि कोई दुर्घटना हो गई है।
'मैंने तुरंत सबमर्सिबल समुदाय में अपने संपर्कों को फोन लगाया था', केमरून ने कहा, 'एकाध घंटे में ही मेरे पास अमुक तथ्य आ गए थे। वे लोग 3500 मीटर पर थे और 3800 मीटर की ओर उतर रहे थे। तभी उनके साथ का संपर्क टूट गया था। मैंने तुरंत कहा था कि बिना किसी बड़ी दुर्घटना के संपर्क नहीं टूट सकता। मुझे आशंका थी कि अंदर स्फोट हुआ है।'
उन्होंने आगे कहा था, 'मेरी नजरों के सामने ऐसा दृश्य घूम गया, जिसमें लोग चीखचिल्ला रहे हैं और आक्सीजन के लिए तड़प रहे हैं। यह कैसी विडंबना है कि 1912 में जिस जगह टाइटेनिक डूब गया था, उसी जगह द टाइटेन डूब गया। दोनों बार चेतावनियों की अवहेलना की गई थी।'
यह जेम्स केमरून वही हैं, जिन्होंने 1997 में विश्व विख्यात टाइटेनिक फिल्म बनाई थी। 2012 में केमरून ने न्यूयार्क टाइम्स अखबार से कहा था कि 13,000 फुट नीचे जहां टाइटेनिक डूबा है, वह दुनिया की सब से मुश्किल से मुश्किल जगह है। वहां समुद्र तल से आप किसी को बचाव के लिए बुला नहीं सकते। उन्हें वह जगह देखनी थी, जहां पहले कोई आदमी गया नहीं था।
मूल रूप फे कनाडा में पैदा हुए केमरून कालेज में पढ़ने के बजाय ट्रक चलाते थे और जार्ज लुकास की अंतरिक्ष फिल्म स्टार वार्स देख कर फिल्मों और उसके स्पेशल इफेक्ट की ओर आकर्षित हुए थे। 1989 में उन्होंने 'द एबीस' नाम की फिल्म बनाई थी, जिसमें समुद्र में ऑयल-रिग पर काम करने वाले कर्मचारियों की समुद्र में विचित्र प्रजाति से भेंट होती है। तभी से उनके मन में समुद्र के पेट में क्या है, यह कुतूहल पैदा हुआ था।
'टाइटेनिक' में फर्स्ट क्लास में यात्रा करने वाली अमीर परिवार की रोज बकटेर (केट विंसलेट) और थर्ड क्लास के मुसाफिर जेक डाउसन (लियोनार्डो डि केप्रिओ) की कहानी है। दोनों को 4 दिन की उनकी टाइटेनिक यात्रा में प्रेम हो जाता है। एक ओर उनका रोमांस और उसमें आने वाली अड़चनें और दूसरी ओर जहाज का हिमशिला से टकरा कर डूबना, ये दोनों घटनाएं एक साथ फिल्म में चलती रहती हैं। अंत में जेक रोज को पटरे पर तैरा कर खुद बर्फ जैसे कातिल पानी में जम कर मौत को गले लगा लेता है।
पूरी फिल्म फ्लैशबैक में थी। शुरुआत में टाइटेनिक जहाज के कचरे की खोज कर रहे अमुक खोजी वृद्ध हो चुकी रोज से आंखों देखी जानकारी लेते हैं। रोज किस तरह लंडन में जहाज पर सवार हुई और कैसे जेक से मिली, वहां से कहानी शुरू हुई। वैसे देखा जाए तो पूरी फिल्म बालीवुड की रोमांटिक फिल्म जैसी है। उस समय तमाम फिल्म विवेचकों ने कहा भी था कि जेम्स केमरून ने बालीवुड की लव स्टोरी बनाई है, जिसमें एक अमीर लड़की है, एक गरीब लड़का है, दोनों के बीच प्यार है और लड़की का परिवार इसमें विलन है।
2009 में केमरून प्लेबॉय पत्रिका को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने प्रेम कहानी कहने के लिए या पैसा कमाने के लिए 'टाइटेनिक' फिल्म नहीं बनाई थी, बल्कि उन्हें जहाज के कचरे तक डुबकी मार कर उसे शूट करना था। केमरून खुद अच्छे खोजी हैं। उन्होंने कहा, 'टाइटेनिक जहाज का कचरा समुद्र का माउंट एवरेस्ट है। खोजी की तरह मुझे वहां जाना था। जब मुझे पता चला कि कुछ लोग आइमेक्स फिल्म बनाने के लिए टाइटेनिक तक डुबकी मार आए हैं तो मुझे लगा कि एक फिल्म बनाऊं, जिससे वहां तक जाने का खर्च निकल आए। एक खोजी यात्री का काम सब से मुश्किल अनुभव करना और वापस आ कर अपनी कहानी कहना है।
पर सालों पहले एक डूब गए जहाज के कचरे को शूट करने के लिए कौन पैसा देगा? (आज के हिसाब से वह 20 करोड़ रुपए में बनी थी) इसलिए केमरून ने फायनेंसरों को ललचाने के लिए आइडिया लड़ाया कि शेक्सपियर के सदाबहार प्रेमियों रोमियो और जूलियट टाइटेनिक जहाज पर हों तो कैसा रहेगा? रोमियो और जूलियट की प्रेम कहानी पर दुनिया में अनेक फिल्में बनी हैं। अपने बालीवुड में 'एक दूजे के लिए', 'बाॅबी', 'सौदागर', 'कयामत से कयामत तक' और 'सनम तेरी कसम' जैसी फिल्में बनी हैं।
इसकी कहानी सर्वकालीन है। रोमियो जूलियट एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं। पर उनके परिवार एकदूसरे से नफरत करते हैं। दोनों विवाह करने का निश्चय करते हैं। पर जूलियट को 3 दिनों में काउंट पेरिस के साथ ब्याह कर देने की साजिश रची जाती है। इससे बचने के लिए जूलियट पादरी से ऐसी औषधि मांगती है, जिसे पीने से वह मृत नजर आए। पादरी यह बात रोमियो से कहने वाला होता है कि रोमियो उसे मृत मान लेता है, इसलिए जूलियट की कब्र पर जा कर उसका चुंबन करता है और अपने साथ लिया जहर पी लेता है। और वह फिर जूलियट को चुंबन करता है। जूलियट आंख खोलती है, उसके पहले वह मर जाता है। प्रेमी को मृत देख कर दुखी हुई जूलियट रोमियो की कटार खींच कर अपने हृदय में मार लेती है, जिससे पर पुरुष से बच सके।
'टाइटेनिक' फिल्म में यही कहानी थोड़ा बदलाव के साथ इस तरह दर्शाई गई है कि प्रेमियों की ट्रेजडी और जहाज की ट्रेजडी साथ साथ चलती है। जेम्स केमरून को फिल्म की सफलता की बहुत उम्मीद नहीं थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, 'फिल्म पूरी होने के 6 महीने बाकी थे, तब ऐस लगा कि मेरा कैरियर खत्म हो जाएगा। मुझे लगा कि इससे पैसा नहीं आएगा। मैंने ट्वेंटीएथ सेंचुरी की तिजोरी में बड़ी गड़बड़ की है, ये लोग मुझे माफ नहीं करेंगे।'
पर 'टाइटेनिक' उस समय की सब से हिट फिल्म साबित हुई। इतना ही नहीं 14 ऑस्कर नॉमिनेशन में 11 अवार्ड ले गई। केमरून का कहना है कि इसका कारण कुछ हद तक टाइटेनिक जहाज की अपनी कहानी है। इतिहास में उस दिन क्या हुआ था इसका कुतूहल इस फिल्म की लोकप्रियता के लिए जिम्मेदार है। वह कहते हैं, 'मैं हमेशा से मानता आया हूं कि एक सदाबहार प्रेम कहानी में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को ऊर्जा देता है। फिल्म में जेक रोज को जीवन देता है। अंतिम शाट में हमने उसकी उन भूरी आंखों में उसके वे 103 साल गुजरते दिखाया है। जेक ने उसे इतनी बड़ी गिफ्ट दी थी।'
फिल्म की कहानी और केमरून के निर्देशन की तो बहुत बातें हैं, पर उनके चीवटपन की दो बातें ध्यान देने लायक हैं। फिल्म फ्लैशबैक में है, इसलिए वर्तमान समय और फिल्म की क्रेडिट की रील्स निकाल दीजिए तो फिल्म की कुल लंबाई 2 घंटे 40 मिनट की है। 1912 में टाइटेनिक को डूबने में भी इतना हो समय लगा था। दूसरे हिमशिला से जहाज का टक्कर 37 सेकेंड का था, फिल्म में भी वह 37 सेकेंड का है।

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वीरेन्द्र बहादुर सिंह जेड-436ए सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उ0प्र0) मो-8368681336
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