इजराइल संसद में न्यायिक सुधार बिल पारित

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 राजनीतिक शक्ति पर न्यायिक अंकुश को रोकने का मकसद?- जनता का उच्च स्तरीय विरोध प्रदर्शन ज़ारी

क्या इजराइल न्यायिक सुधार कानून का लोकतंत्र के आइकॉन भारत और अमेरिका विरोध दर्ज कराएंगे ?
स्वतंत्र न्यायिक संसाधनों को नियंत्रित करने वाला कोई भी कानून पास करना लोकतंत्र व्यवस्था के पतन करने के समान - एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर दुनियां का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत और सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका की दुनियां भर में लोकतंत्र की मसालें दी जाती है। याने दोनों लोकतंत्र के आइकॉन बनकर उभरे हैं जो दोनों देशों के लिए गर्व की बात है, क्योंकि लोकतंत्र में पावर डिसेंट्रलाइज्ड होते हैं खासकर के वहां की न्यायपालिका को संवैधानिक पावर होता है कि वह यहां तक कि शासकीय निर्णय को भी रद्द कर सकते हैं,जिसका सबसे बड़ा उदाहरण भारत में मणिपुर मामले में सीजेआई ने कहा सरकार को हम कार्रवाई करने का कुछ समय देंगे,अगर जमीनी स्तर पर कुछ नहीं होता तो हम कार्रवाई करेंगे, को जनता ने रेखांकित किया है।हालांकि सुप्रीम कोर्ट के किसी फ़ैसले पर सरकार फिर से उस संबंधी नया विधेयक जारी कर देती है जो कि भारत में कई मामलों में देखने को मिला है, दिल्ली विधेयक 2023 इसका सबसे बड़ा ताज़ा उदाहरण है।चूंकि दिनांक 24 जुलाई 2023 को देर शाम इजराइली संसद ने न्यायिक सुधार बिल 120 नेसेट सदस्यों में से 64 सरकारी संसदों नें पक्ष तथा विपक्ष ने बहिष्कार किया फ़िर 64/0 से विधेयक पारित हुआ है।बता दें कि इस बिल के विरोध में इजराइल में लंबे समय से जनता सड़कों पर है। जबरदस्त विरोध प्रदर्शन लंबे समय से हो रहा है जिसे हम टीवी चैनलों पर कई महीनों से देख रहे हैं, परंतु अब कानून बन जाने से इस प्रदर्शनकारियों को विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ सेना, खुफिया एजेंसियों सिक्योरिटी संदर्भित पूर्व अधिकारियों पूर्व जजों और पूर्व शीर्ष अधिकारियों डॉक्टर वायुसेना के वर्तमान पायलट का भी समर्थन है। यहां यह बात रेखांकित करना जरूरी है कि भारत में भी राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक 2022 लाने की तैयारियां है जिसमें कॉलेजियम सिस्टम सहित कुछ अन्य न्यायिक सुधारों को लागू करने की सरकार की मंशा है जिसका केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच मतभेद मीडिया और टीवी चैनलों में देखने को मिलते हैं। चूंकि इजराइल में न्यायिक सुधार बिल कानून बन चुका है इसीलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, क्या इजराइल न्यायिक सुधार बिल का लोकतंत्र के आइकॉन भारत और अमेरिका विरोध दर्ज कराएंगे?
साथियों बात अगर हम इजरायली न्यायिक सुधार बिल की करें तो, इस्राइल की संसद ने सोमवार को एक विवादास्पद कानून को मंजूरी दे दी। मामले से जुड़े लोगों के मुताबिक, इसे राजनीतिक शक्ति पर न्यायिक अंकुश को रोकने के मकसद से बनाया गया है। इसे देश की न्याय प्रणाली को फिर से आकार देने की पीएम की योजना के अहम हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। परंपरागत रूप से इजराइल के सुप्रीम कोर्ट की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत रही है क्योंकि संसद में कोई दूसरा सदन नहीं है जो नेसेट कानून को नियंत्रित रख सके। अभी मुख्य ध्यान तथाकथित पर्याप्तता खंड पर है: अब तक, सुप्रीम कोर्ट सरकारी निर्णयों को अनुचित घोषित करने में सक्षम रहा है और इसलिए, उन्हें शून्य और शून्य बना देता है। सरकार इस धारा को ख़त्म करना चाहती थी। जुलाई के मध्य में पहले मतदान के बाद, निर्णायक वोट सोमवार को था, कुल 120 नेसेट सदस्यों में से, सभी 64 सरकारी सांसदों ने हां में मतदान कियाजिसका अर्थ है कि कानून अब पारित हो गया है। मीडिया में आई जानकारी के मुताबिक, विधेयक के पक्ष में 64 वोट पड़े। विपक्ष ने वोटिंग का बहिष्कार किया। इस वजह से विधेयक के विरोध में एक भी वोट नहीं पड़ा। यह सरकार के न्यायिक सुधार में पारित होने वाला पहला प्रमुख विधेयक हैविधेयक में संशोधन करने या विपक्ष के साथ व्यापक प्रक्रियात्मक समझौता करने के लिए इस्राइल की संसद में अंतिम समय में किए गए कई प्रयास विफल रहे थे। कानून की कठोरता को कम करने के लिए रखे गए विचारों का भी कोई नतीजा नहीं निकला था। पीएम और गठबंधन के प्रमुख नेताओं ने इसे लेकर चर्चा भी की थी, लेकिन हर बार कोई नतीजा नहीं निकलता था, इस बीच विधेयक पर रविवार सुबह चर्चा हुई। लगभग 30 घंटे की लगातार बहस के बाद मत विभाजन किया गया। मीडिया के मुताबिक,चर्चा के दौरान राजनीतिक सत्ता पर न्यायिक अंकुश लगाने के पक्ष और विपक्ष में हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए। कानून के मुताबिक, अब अदालतें कैबिनेट और मंत्रियों के फैसलों की तर्कसंगतता पर किसी भी तरह की पड़ताल या जांच के आदेश नहीं दे पाएंगी। कानून के समर्थन में वोट करने के लिए पीएम भी संसद पहुंचे, जो पिछले कुछ दिनों से हास्पिटल में भर्ती थे। इस विवादास्पद कानून के खिलाफ पिछले सात महीने से ही विरोध हो रहा है। विरोध करने वालों का दावा है कि यह कानून इजरायल में न्यायपालिका के अधिकार को सीमित कर देगा और सारी शक्तियां सरकार के पास आ जाएंगी। प्रस्तावों में एक विधेयक शामिल है जो संसद में साधारण बहुमत से सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पलटने की अनुमति देगा, जबकि दूसरा संसद को जजों की नियुक्ति में आखिरी अधिकार देगा। रिपोर्ट के मुताबिक यह कानून सरकार को सुप्रीम कोर्ट की उन कार्रवाइयों को खारिज करने की शक्ति को हटा देगा, जिन्हें वह सही नहीं मानती है। मीडिया के मुताबिक आलोचकों का कहना है कि इस कानून के बाद उन्हें लोकतंत्र के खत्म होने का डर है। इस बदलाव से पीएम को भ्रष्टाचार के आरोपों के खिलाफ लड़ाई में मदद मिलेगी, जिससे वह इनकार करते हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पीएम पर भ्रष्टाचार के आरोप में मुकदमा चल रहा है और उनके सहयोगी सरकारी पदों पर अपने साथियों को नियुक्त करना चाहते हैं, कब्जे वाले वेस्ट बैंक पर इजराइल का नियंत्रण बढ़ाना चाहते हैं और अति-रूढ़िवादी लोगों के लिए विवादास्पद छूट लागू करना चाहते हैं। न्यायालय के पास मौजूदा शक्ति देश की सरकार को निरंकुश बनने से रोकने में मदद करती है। पीएम (73) को शुक्रवार को गलील सागर की यात्रा के दौरान भीषण गर्मी में चक्कर आने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डाक्टरों ने प्रधानमंत्री का गहन परीक्षण किया और कहा कि वह पूरी तरह से सामान्य हैं।
साथियों बात अगर हम आम जनता द्वारा विरोध प्रदर्शन की करें तो, प्रदर्शनकारियों ने संसद के बाहर किया हंगाम।न्यायिक सुधार बिल पर सहमति के लिए आखिरी समय तक सरकार और विपक्ष के बीच बातचीत हुई लेकिन विफल रही। विपक्षी नेता ने सोमवार को कहा कि इस सरकार के साथ ऐसे किसी समझौते पर पहुंचना असंभव है, जिससे लोकतंत्र सुरक्षित रहे। सरकार इस देश को तबाह करना चाहती है, लोकतंत्र सुरक्षा, एकता और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को खत्म कर देना चाहती है। वोटिंग से पहले प्रदर्शनकारी संसद के बाहर पहुंच गए थे और पुलिस को हालात काबू में करने के लिए खासी मेहनत करनी पड़ी। प्रदर्शनकारियों ने पीएम पर उनके खिलाफ संभावित फैसलों को रद्द करने के लिए सुधारों का उपयोग करने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया है, इजराइली नेता ने आरोप को खारिज कर दिया है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक आलोचकों का आरोप है कि जिस देश में कोई औपचारिक संविधान नहीं है, वहां कार्यकारी शक्ति पर महत्वपूर्ण नियंत्रण और संतुलन को हटाकर वे उदार लोकतंत्र को ही खतरे में डाल रहे हैं। इजराइल की लोकतांत्रिक संरचनाएं पहले से ही कमजोर हैं क्योंकि वहां कोई लिखित संविधान नहीं है। सरकार के पास एक सदन वाले नेसेट (संसद) में बहुमत है और राष्ट्रपति का कार्यालय काफी हद तक औपचारिक है।इसलिए सुप्रीम कोर्ट को नागरिक अधिकारों और कानून के शासन की रक्षा करने वाली संस्था के रूप में देखा जाता है। न्यायपालिका देश में कार्यकारी शक्ति की जांच करने में अमह भूमिका निभाती है। नीसेट में अपोजिशन लीडर ने कहा-इजराइल केसंसदीय इतिहास में 24 जुलाई 2023 एक अफसोसनाक दिन के तौर पर याद किया जाएगा। सरकार ने अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल किया।
साथियों बात अगर हम इजरायली सरकार के पक्ष रखने की करें तो, सरकार का तर्क है कि सत्ता में उन असंतुलन को ठीक करने के लिए यह उपाय जरूरी हैं, जिसकी वजह से हाल के दशकों में राजनीतिक फैसलों में अदालतों का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है।
साथियों बात अगर हम इस बिल के माइना की करें तो इस बिल के मायने समझिए, इजराइल में ज्यादातर सरकारें गठबंधन यानी अलायंस वाली होती हैं। इसकी वजह ये है कि कई छोटी-बड़ी पार्टियां हैं और किसी एक को बहुमत मिलना बहुत मुश्किल होता है।दूसरी बात यह है कि अगर सरकार या कोई मिनिस्टर कोई ऑर्डर जारी करता है तो उन्हें फौरन कोर्ट में चैलेंज कर दिया जाता है और इसकी वजहें सियासी ज्यादा होती हैं। पीएम सरकार का दावा है कि अदालतें कई बार ताकत का बेजाइस्तेमाल करती हैं और अहम कामों पर भी रोक लग जाती है। इसलिए पॉवर बैलेंसिंग की जरूरत है। जाहिर है, विपक्ष और लोकतंत्र समर्थक संगठनों की दलील अलग होगी। वो कहते हैं- नेतन्याहू पर करप्शन के कई केसेज हैं। वो खुद को बचाने के लिए ही तमाम कवायद कर रहे हैं। अगर ज्यूडिशियरी कमजोर हुई तो सरकार मनमानी करेगी। मनमर्जी से अहम ओहदों पर पसंदीदा लोग अपॉइंट किए जाएंगे। कुल मिलाकर इसे तानाशाही बढ़ेगी और लोकतंत्र कमजोर होगा।
साथियों बात अगर हम भारत के राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक 2022 की करें तो, कॉलेजियम सिस्टम याने सुप्रीम कोर्ट यानि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से बनाई गई यह एक प्रणाली है, जिसके अंतर्गत न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण किया जाता है। यह कॉलेजियम सिस्टम भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 सर्वोच्च और उच्च न्यायालय में क्रमशः न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है। हालांकि यह प्रणाली संसद के किसी अधिनियम या फिर संविधान के प्रावधान द्वारा स्थापित नहीं है।
साथियों बात अगर हम अमेरिका सहित अन्य देशों की प्रतिक्रिया की करें तो, कानून का विरोध इस्राइल के अलावा बाहर भी हो रहा है। इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले हफ्ते एक फोन कॉल के दौरान सीधे नेतन्याहू के साथ चिंता व्यक्त की थी। बाइडेन ने चेतावनी भी दी थी कि व्यापक सहमति के बिना बदलावों को आगे बढ़ाना लोकतांत्रिक संस्थानों के पतन के समान है और यूएस-इस्राइल संबंधों को कमजोर कर सकता है।जर्मनी के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि उसे बहुत अफसोस है कि सरकार और विपक्ष के बीच बातचीत फिलहाल टूट गई है। वहीं ब्रिटिश बोर्ड ऑफ डेप्युटीज ने सर्वसम्मति खोजने के लिए इस्राइली राष्ट्रपति के प्रयासों का समर्थन किया। एक बयान में कहा गया, इस बात से बहुत निराशा हुई है कि, इस स्तरपर वार्ता के प्रयास विफल हो गए हैं'
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि इजराइल संसद में न्यायिक सुधार बिल पारित - राजनीतिक शक्ति पर न्यायिक अंकुश को रोकने का मकसद?- जनता का उच्च स्तरीय विरोध प्रदर्शन ज़ारी।क्या इजराइल न्यायिक सुधार कानून का लोकतंत्र के आइकॉन भारत और अमेरिका विरोध दर्ज कराएंगे ? स्वतंत्र न्यायिक संसाधनों को नियंत्रित करने वाला कोई भी कानून पास करना लोकतंत्र व्यवस्था के पतन करने के समान है।

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कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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