तुम ही मेरा सब कुछ-दिकु
तुम ही मेरा सब कुछ-दिकु
सुनो दिकु......एक आस
एक विश्वास
तुम से है सिर्फ एक मिलन की प्यास
चाहूं सिर्फ ख्वाब में साथ
ना करूँगा कोई निरथर्क प्रयास
बस तुम ही मेरे ख्याल में
तुम ही मेरे हर एक सवाल में
तुम बिन जैसे ज़िंदा बन गया हूँ लाश
लौट आओ अब ना करो और निराश
तुम से ही आस
तुम पर ही है विश्वास
खुदा से हरदम में मांगूं
वैसी एक तुम ही हो मेरी अरदास
प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए
About author
प्रेम ठक्करसूरत ,गुजरात
ऐमेज़ॉन में मैनेजर के पद पर कार्यरत